मंगलवार, अगस्त 24, 2010

जब 'प्रियदर्शनी' से परास्त हुईं राजमाता

इतिहास से दिलचस्प मुकाबला
यह एक बड़ी जंग थी. मैदान था रायबरेली. पूरे देश की निगाहें इस पर टिकी थीं. लोगो की उत्सुकता नतीजे में थी. जी हाँ, यह 1980 का आम चुनाव था. जनता लहर का वेग ख़त्म हो चुका था और कांग्रेस एक बार फिर अपनी खोई हुई साख को पाने की फिराक में थी. रायबरेली में मुकाबला दो महिला दिग्गजों की आन- बान-शान का था. यह भिडंत 'प्रियदर्शनी' और 'राजमाता' विजयाराजे सिंधिया के बीच थी. एक देश की पहली महिला प्रधानमन्त्री और पंडित जवाहरलाल नेहरु की बेटी, तो दूसरी ग्वालियर की राजमाता. इस जंग में 'प्रियदर्शनी' ने राजमाता को धूल चटा दी. लोकसभा चुनावों में दोनों की जीत-हार के अपने-अपने रिकॉर्ड हैं. इंदिरा को अपने राजनीतिक करियर में केवल एक बार ही हार का सामना करना पड़ा जबकि राजमाता संसदीय चुनाव में दो बार हारीं. नेहरु के निधन के बाद 1964 में लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में इंदिरा गाँधी पहली बार मंत्री बनीं. 1966 में उन्हें प्रधानमन्त्री होने का गौरव हासिल हुआ. राजमाता पहली बार 1957 में दूसरी लोकसभा के लिए चुनी गयीं. उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस से हुई. दो लोकसभा चुनावों में गुना और ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से वह कांग्रेस की प्रत्याशी थीं. चौथे आम चुनाव के पूर्व उनका कांग्रेस से मोहभंग हो गया. 1967 के लोकसभा चुनाव में वह निर्दलीय उम्मीदवार  के रूप में विजयीं हुईं. बाद में वह जनसंघ में शामिल हो गयीं. जब जनसंघ भारतीय जनता पार्टी के रूप में तब्दील हुआ, तब वह उसमे आ गयीं. मरते दम तक उन्होंने भाजपा नहीं छोड़ी. 1980 के आम चुनाव में राजमाता को अपनी जीत का पक्का यकीन था. उन्हें विश्वास था कि जनता इमरजेंसी के काले अध्याय को बिसरा नहीं पायी होगी. 1977  के चुनाव में इंदिरा गाँधी रायबरेली से चुनाव हार चुकी थीं. बावजूद इसके, वह यहाँ से फिर चुनाव लड़ रही थीं. रायबरेली कांग्रेस का गढ़ रहा है. आजादी के बाद यहाँ से लोकसभा के लिए हुए 15 चुनावों में से 13 बार कांग्रेस की विजय हुई है. दो बार ही गैर कांग्रेसी उम्मीदवार को सफलता मिली है. इंदिरा गाँधी को विश्वास था कि रायबरेली की जनता उनका साथ जरूर  देगी. इस क्षेत्र से इंदिरा के पति फ़िरोज़ गाँधी पहली लोकसभा में चुनाव जीते थे. 1980 में इंदिरा गाँधी के पक्ष में दूसरी बात यह गयी की 18 माह की जनता पार्टी की सरकार से लोग उकता चुके थे. विपक्ष बिखर चुका था. जनता कांग्रेस को ही विकल्प के रूप में देख रही थी. इंदिरा गाँधी चुनाव जीतीं और फिर केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी.

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