रविवार, अगस्त 22, 2010

चरण पर बेअसर रही 1984 की लहर

इतिहास से दिलचस्प मुकाबला

1984 में इंदिरा जी की हत्या से कांग्रेस और राजीव गाँधी के प्रति पैदा हुई सहानुभूति के लहर बागपत में बेअसर रही. यह चौधरी चरण सिंह का गढ़ रहा जिसकी फसल उनके बेटे अजीत सिंह भी काट रहे हैं. आठवीं लोकसभा चुनाव में पूरे देश में कांग्रेस की वह लहर दिखी जो इससे पहले जनता पार्टी के छिन्न- भिन्न हो जाने पर 1980 में भी नहीं बन सकी थी. बावजूद इसके, उत्तर प्रदेश की बागपत संसदीय सीट से चरण सिंह निर्वाचित हुए. उस समय प्रदेश में रहीं 85 सीटों में से मात्र दो सीटें ही विपक्ष की झोली में गयीं थीं. शेष 83 सीटों पर कांग्रेस का कब्ज़ा था. लोकसभा की 543 सीटों में 415 कांग्रेस को मिली थीं. 1977 के बाद से यहाँ हुए लोकसभा चुनावों में अब तक केवल एक बार ही लोकदल की पराजय हुई है.
1984 में बागपत संसदीय क्षेत्र से मुकाबला कांग्रेस और लोकदल के बीच था. कांग्रेस के उम्मीदवार महेश चन्द्र थे. लोकदल से चौधरी चरण सिंह प्रत्याशी थे. बागपत की जनता ने चौधरी का साथ दिया. 85674 मत के अंतर से चरण सिंह विजयी हुए. महेश चन्द्र को 167789 और चरण को 253463 मत मिले. हालांकि, चरण सिंह यहाँ से पहली बार 1977 में चुनाव जीते थे जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी. मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री हुए और चरण सिंह उप प्रधानमंत्री. जनता सरकार गिरने के बाद कांग्रेस की मदद से वे देश के पांचवे प्रधानमंत्री हुए.
अपने लम्बे राजनीतिक करियर में चरण सिंह संसद में तीन बार पहुंचे, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार में वे कई बार मंत्री रहे. 1937 में ब्रितानी काल में उन्होंने पहली बार उत्तर प्रदेश के छतरौली क्षेत्र का प्रतिनिधितिव किया. आजादी के पहले और आजादी के बाद वे चार बार ( 1946, 1952, 1962 और 1967 में) इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके थे. 1951 में वे पहली बार प्रदेश के मंत्री बने. 1970 तक प्रदेश के हर मंत्रिमंडल में वे शामिल रहे. दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. अक्टूबर, 1970 में उत्तर प्रदेश में जब राष्ट्रपति शासन लागू हुआ तब वे मुख्यमंत्री थे. प्रदेश के भूमि सुधार में उनकी प्रमुख भूमिका रही.
लोकदल का गढ़  देश में ऐसे कम ही क्षेत्र होंगे जिनकी निष्ठा किसी राजनीतिक परिवार के साथ जुडी हो. उत्तर प्रदेश का बागपत उनमे एक है, जहाँ के लोगों की चरण सिंह और उनके परिवार के प्रति निष्ठा बरकरार है. यहाँ के लोग चरण सिंह को अब तक नहीं भूला पाए हैं. 1977 से यहाँ हुए नौ लोकसभा चुनावों में आठ बार बहुसंख्य मतदाताओं ने लोकदल का ही साथ दिया है. तीन बार चरण सिंह और पांच बार उनके बेटे अजीत सिंह यहाँ से चुनाव जीत चुके हैं. मात्र एक बार ही यहाँ से भारतीय जनता पार्टी का प्रत्याशी विजयी हुआ है.

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