सोमवार, अगस्त 16, 2010

कुछ खास

तीसरे  पायदान पर पहुंचे मनमोहन

पन्द्रह अगस्त को लगातार सातवीं बार लालकिले की प्राचीर से तिरंगा फहराकर मनमोहन सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी को पीछे छोड़ दिया है। फिलहाल वाजपेयी अब उनके प्रतिद्वन्द्वी भी नहीं है, क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी ने रानजीतिक जीवन से संन्यास ले लिया है। तिरंगा फहराने वाले प्रधानमन्त्री की कतार में तीसरे स्थान पर आ गए हैं।
.........और वंचित रहे वाजपेयी
वाजपेयी ने लगातार छह बार यह गौरव हासिल किया। राजग सरकार का नेतृत्व कर चुके वाजपेयी 19 मार्च, 1998 से 22 मई 2004 के बीच प्रधानमन्त्री रहे। उन्होंने कुल छह बार लालकिले की प्राचीर से तिरंगा फहराया। इससे पहले वह 16 मई 1996 को भी प्रधानमन्त्री बने, लेकिन 1 जून 1996 को उन्हें पद से हटना पड़ा था। इससे वह एक मौका तिरंगा फहराने से वंचित रह गए।
नेहरू और इन्दिरा ने रचा इतिहास
देश में बीते छह दशक से जारी जश्न-ए-आजादी के सिलसिले में लालकिले की प्राचीर से सबसे ज्यादा 17 बार तिरंगा फहराने का मौका पण्डित नेहरू को मिला। 15 अगस्त 1947 को लालकिले पर उन्होंने पहली बार झण्डा फहराया। नेहरू 27 मई 1964 तक पीएम के पद पर रहे। इस अवधि में उन्होंने लगातार 17 बार तिरंगा लहराया। नेहरू की बेटी इन्दिरा उनसे एक कदम पीछे रहीं। उन्होंने 16 बार लालकिले पर तिरंगा फहराया। बतौर पीएम अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने 11 बार और दूसरे कार्यकाल में 5 बार तिरंगा फहरया।
जिन्हें नहीं मिला मौका
गुलजारी लाल नन्दा और चन्द्रशेखर ऐसे नेता रहे, जो पीएम तो बने, लेकिन उन्हें लालकिले पर तिरंगा फहराने का मौका नहीं मिला। नेहरू के निधन के बाद 27 मई 1964 को नन्दा प्रधानमन्त्री बने, लेकिन उस साल 15 अगस्त आने से पहले ही 9 जून 1964 को वह पद से हट गए और उनकी जगह लाल बहादुर शास्त्री पीएम बने। लाल बहादुर के निधन के बाद हालांकि उनको पीएम बनने का दूसरी बार भी मौका मिला, 24 जनवरी 1966 को नेहरू की पुत्री इन्दिरा ने सत्ता की बागडोर सम्भाल ली और वह तिरंगा फहराने से वंचित रहे। चन्द्रशेखर के साथ भी कुछ ऐसा ही घटित हुआ। 10 नवंबर 1990 को वह प्रधानमन्त्री बने लेकिन 1991 के स्वतन्त्रता दिवस से पहले ही उस साल 21 जून को पद से हट गए।

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