बुधवार, अगस्त 11, 2010

कमंडल में फंसी मेनका

इतिहास से दिलचस्प मुकाबले...

पीलीभीत संसदीय सीट से पांच बार चुनाव जीत चुकी मेनका गाँधी को यहाँ 1991 में हार का भी सामना करना पड़ा था. यह वह दौर था जब मंडल की लौ मंद होने लगी थी और कमंडल का जादू जनता के सिर चढ़ कर बोल रहा था. दसवीं  लोकसभा के चुनाव यानी साल 1991 में पीलीभीत संसदीय सीट से भाजपा के परशुराम ने मेनका गाँधी को शिकस्त दी. मेनका गाँधी जनता पार्टी (नेशनल) की प्रत्याशी थीं. इस चुनाव में वे कमंडल के भवर जाल में फस गयीं. इस जंग में मेनका को मात मिली. 1984 की हार के बाद मेनका गाँधी की यह दूसरी पराजय थी.
1984  में मेनका गाँधी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत अमेठी की हार के साथ की थी. इस चुनाव के बाद ही पीलीभीत संसदीय सीट को उन्होंने अपनी राजनीतिक कर्मस्थली बनायीं. नौवें लोकसभा चुनाव में जनता दल (कांग्रेस विरोधी दल) में शामिल हुईं और पीलीभीत सीट से वे पहली बार निर्वाचित हुईं. यह जीत मेनका गाँधी के प्रति लोगों की सहानुभूति और मंडल की मिश्रित विजय थी. हालांकि, दसवीं लोकसभा चुनाव में पीलीभीत से मेनका गाँधी की पराजय हुई. इस चुनाव में मेनका के पक्ष में 139710 मत और परशुराम को 146633 मत मिले. मेनका को 6923 मतों से हार का सामना करना पड़ा. इस हार के बाद पीलीभीत की जनता ने उनका साथ कभी नहीं छोड़ा. मेनका गाँधी इस सीट से पांच  बार चुनी गयीं. दो बार जनता दल और दो बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सफलता मिली. चौदहवीं लोकसभा के लिए वे पीलीभीत से भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार के रूप में जीतीं. पंद्रहवीं लोकसभा के लिए मेनका यह सीट अपने बेटे वरुण गाँधी के सुपुर्द कर खुद आवंला क्षेत्र से भाग्य आजमा रही हैं.

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