रविवार, फ़रवरी 20, 2011

नेहरू की वसीयत

 नेहरू की वसीयत
बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी वसीयत भी लिखी थी जो कि आज तक खोली नहीं गई। यह एक बैंक में अब भी रखी हुई है। इसी बैंक में जलियांवाला कांड के समय पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर रहे जनरल माइकल डायर का भी खाता था। डायर के लंदन चले जाने के बाद तक यह खाता जारी रहा। जलियांवाला बाग में गोली चलाने का आदेश देने वाले ब्रिागेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर का खाता भी उसी बैंक में था।
 लखनऊ में तैनात इलाहाबाद बैंक के सहायक महाप्रबंधक हरिमोहन ने बताया कि दस्तावेजों की खोजबीन के दौरान हमारे हाथ लगी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की वसीयत जो एक बंद लिफाफे में अब भी बैंक की सेफ कस्टडी में रखी हुई है। उन्होंने बताया कि उपलब्ध लेजरों के अनुसार पंडित नेहरू ही नहीं बल्कि उनके पिता पंडित मोतीलाल नेहरू का भी इलाहाबाद बैंक में खाता था। उस समय बैंक में केवल अंग्रेजों और तब के राजा महाराजाओं और  नवाब - तालुकेदारों के ही खाते खोले जाते थे और डिप्टी कलक्टर से नीचे के किसी आम भारतीय का खाता खोला ही नहीं जाता था।
      हरिमोहन ने वर्ष 1892 का एक लेजर दिखाया जिसमें प्रदेश के कई राजाओं, महाराजाओं और तालुकेदारों के खातों में हजारों रुपए के लेन-देन के ब्यौरे हैं और सुल्तानपुर अंचल के तत्कालीन राजा पट्टी के खाते में तो तीन लाख से अधिक रुपए जमा थे। जलियांवाला नरसंहार के समय पंजाब के गवर्नर रहे जनरल डायर के नाम पर बैंक में 10 हजार रुपए जमा थे और बैंक में उस नरसंहार के खलनायक  बिग्रेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर का भी खाता था।     
      उन्होंने बताया कि हम शीघ ही बैंक के लखनऊ स्थित सौ साल पुराने भवन में एक संग्रहालय बनाने जा रहे हैं। इसमें बैंक की स्थापना से लेकर आज तक के अनेक दुर्लभ लेजर और दस्तावेज आम जनता के लिए रखे जाएंगे, जिनके पन्नों पर इतिहास की अनेक रोचक जानकारी अंकित हैं।

1865 में हुई बैंक की स्थापना
    वर्ष 1865 में पांच यूरोपीय नागरिकों द्वारा इलाहाबाद बैंक की शुरुआत हुई। बैंक की पहली शाखा इलाहाबाद में वर्ष 1865 में पांच यूरोपीय लोगों ने खोली और दूसरी शाखा कोलकाता में खोली गई। इलाहाबाद बैंक मूलत: अंग्रेजों का बैंक था। इसकी शुरुआती शाखाएं अंग्रेजी साम्राज्य के लिए रणनीतिक और सैनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहे कोलकाता, मेरठ, झांसी,  लखनऊ और कानपुर में खोली गई और  उन इलाकें में खोली गर्इं जहां अंग्रेज अधिकारियों के निवास थे और  जहां से उनका राजकाज चलता था।
     

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