शुक्रवार, अगस्त 20, 2010

'मिस्टर क्लीन' असली वारिस

इतिहास से दिलचस्प मुकाबले

यह विरासत की जंग थी  और सामने था 1984 का आम चुनाव. अमेठी की जनता को तय करना था कि गाँधी परिवार का असली वारिस कौन है. चुनाव के ठीक दो महीने पहले तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी की हत्या हो गयी थी. देश इस घटना से स्तब्ध था. चार वर्षों के अन्दर गाँधी परिवार पर यह दूसरा संकट था. 1980 में संजय गाँधी की विमान हादसे में मौत हो चुकी थी. इस संकट की घडी में पूरा देश गाँधी परिवार के साथ था. लोग इमरजेंसी के काले अध्याय को भूल चुके थे.
संजय गाँधी की मौत के बाद माँ, इंदिरा को सहारा देने के लिए कांग्रेस में 'मिस्टर क्लीन' यानी राजीव गाँधी का पदार्पण हो चुका था. इंदिरा गाँधी के बाद कांग्रेस का नेतृत्व एक युवा नेता के पास था, लेकिन इंदिरा के बिना कांग्रेस की कल्पना करना बहुत मुश्किल था. यह दौर कांग्रेस के लिए भी बहुत उथल- पुथल का था.
इंदिरा की हत्या के बाद कांग्रेस में एक यक्ष सवाल खड़ा हो गया कि, कांग्रेस (आई) का असली वारिस कौन होगा. हाशिये पर चले गए विपक्ष में एक बार फिर बेचैनी थी. देश में आठवीं लोकसभा के लिए चुनाव हो रहे थे. अमेठी संसदीय सीट से राजीव गांधी और मेनका आमने-सामने थे. राजीव कांग्रेस के उम्मीदवार थे और मेनका स्वतंत्र प्रत्याशी थीं. मेनका ने अपने को गाँधी परिवार का असली वारिस बताया. फैसला अमेठी कि जनता जनार्दन को करना था.
अमेठी कि जनता उहापोह में थी. एक तरफ गाँधी परिवार का बेटा जिसके सिर से दो माह पूर्व ही माँ का साया उठ गया तो दूसरी तरफ गाँधी परिवार की बहू थी. मेनका को यह उम्मीद थी कि अमेठी की जनता संजय गाँधी के कार्यों को भुला नहीं पायी होगी. वे संजय गाँधी को कांग्रेस का असली वारिस मानती थीं और उनके नहीं रहने पर वे खुद को असली वारिस समझती थीं. यह मुकाबला बहुत दिलचस्प और रोमांचक था. पूरे देश की निगाह चुनाव के नतीजो पर टिकीं थीं. अमेठी की जनता ने राजीव गाँधी को कांग्रेस की बागडोर सँभालने का जनादेश दिया. मेनका गाँधी तीन लाख मतों से चुनाव हार गई. राजीव को 365041 और मेनका को 50163 मत मिले.
अमेठी मात्र एक संसदीय सीट का चुनाव नहीं था. इसके दूरगामी परिणाम हुए. कांग्रेस में असली-नकली की बहस ख़त्म हो गई. कांग्रेस सत्ता में लौटी. राजीव गाँधी प्रधानमन्त्री हुए. कांग्रेस की जीत में सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए. मेनका ने भी कांग्रेस से अपना नाता तोड़ लिया. उनका नया ठिकाना बना पीलीभीत संसदीय क्षेत्र. 1989 में वे पहली बार इस संसदीय सीट से चुनाव जीतीं. इस सीट से बे पांच बार चुनाव जीत चुकी हैं. गैर कांग्रेसी सरकार में वे केंद्र में छह बार मंत्री बनीं.

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