शुक्रवार, अगस्त 27, 2010

यह हार थी बड़ी

इतिहास से दिलचस्प मुकाबले

जीत ही नहीं कई बार हार भी बड़ी होती है. 14वी लोकसभा चुनाव में शिवराज पाटिल का महाराष्ट्र की लातूर संसदीय सीट से परास्त होना एक बड़ी घटना थी. यहाँ पहली बार कमल से पंजा पराजित हुआ. यहाँ तक कि 'कमंडल की लहर' भी लातूर में बेअसर हुई थी. इस सीट से उस समय भी कांग्रेस उम्मीदवार शिवराज पाटिल की जीत हुई पर 2004 में यहाँ शिवराज को हार का सामना करना पड़ा जो इसके पहले सात बार इस क्षेत्र से ही लोकसभा में पहुँच चुके थे. 1962 से इस संसदीय क्षेत्र से 11 दफा कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई है. 2004 की हार के पहले 1977 के आम चुनाव में पहली बार कांग्रेस विरोधी लहर में ही यहाँ पंजे की हार हुई थी.
लातूर कांग्रेस का गढ़ रहा है. 2004 के आम चुनाव में यहाँ कोई लहर नहीं थी. निश्चित रूप से कांग्रेस की गणना में यह उनकी सुरक्षित जीत वाली सीट रही होगी. आखिर हो भी क्यों न, यहाँ से कांग्रेस के प्रमुख सेनापति शिवराज पाटिल चुनाव लड़ रहे थे लेकिन चुनाव नतीजो से सब दंग रह गए. कांग्रेस ने लातूर सीट खोई. भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार रूप ताई पाटिल ने उन्हें 30551 मतों से पराजित किया. कांग्रेस प्रत्याशी शिवराज को  372990 और भाजपा को 403541 मत मिले.
14वीं लोकसभा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. एनडीए की सरकार बनी. मनमोहन सिंह प्रधानमन्त्री बने. शिवराज पाटिल को भी मनमोहन के कुनबे में शामिल किया गया. जुलाई, 2004 में उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया. वह यूपीए सरकार में गृहमंत्री बने. मुंबई में आतंकी हमलों के बाद वे अपने परिधानों के कारण सुर्ख़ियों में आये. इस घटना में कांग्रेस की किरकिरी हुई. नतीजतन उन्हें गृहमंत्री का पद गवाना पड़ा. पाटिल के राजनीतिक करियर की शुरुआत 1970 के दशक में हुई. 1972 में पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए और कई दफा महत्वपूर्ण पद पर रहे. 1980 के दशक में उन्होंने केंद्रीय राजनीति में प्रवेश किया. पहली बार सातवीं लोकसभा में चुनाव जीते और इंदिरा गाँधी की सरकार में रक्षा राज्यमंत्री बने. जब-जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही तब-तब वे प्रमुख पदों पर रहे. 1999 के आम चुनाव के बाद उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली.

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