शुक्रवार, सितंबर 03, 2010

कमल से पिट गए थे कमलनाथ

इतिहास से दिलचस्प मुकाबले



इंदिरा गाँधी के तीसरे बेटे  को भी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. यह तीसरा बेटा और कोई नहीं, बल्कि वरिष्ट कांग्रेसी नेता कमलनाथ हैं. इंदिरा गाँधी ने 1980 में मध्यप्रदेश  के छिंदवाड़ा जिले में एक जनसभा में कमलनाथ को अपना तीसरा बेटा कहा था. देश में सातवीं लोकसभा के लिए चुनाव हो रहे थे. इस चुनाव में कमलनाथ छिंदवाड़ा संसदीय सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी थे. यह उनका पहला चुनाव था. कमलनाथ चुनाव जीत गए. अगर 1997 के उपचुनाव को छोड़ दिया जाए तो इस सीट से उनकी जीत का सिलसिला कभी नहीं थमा. यहाँ से वे लगातार साथ बार चुनाव जीत चुके हैं. हवाला काण्ड में नाम आने के कारण 1996 में कमलनाथ यहाँ से चुनाव नहीं लड़ सके. इस सीट से उनकी पत्नी अलका उम्मीदवार थीं. अलका चुनाव जीतीं और यह सीट कांग्रेस के खाते में गयी. 1997 में अलका ने लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया. इसके बाद यहाँ उपचुनाव हुए. इसमें कमलनाथ का मुकाबला कमल से था. सुन्दरलाल पटवा भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी थे. मुकाबला दिलचस्प था. लोगों के यहीं के विपरीत चुनाव के नतीजे आये. कमल ने कमलनाथ को परास्त कर दिया. 37 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से कमलनाथ पराजित हुए. हालांकि, 1998 के आम चुनावों में कमलनाथ यहाँ से फिर निर्वाचित हुए. फिर वे लगातार चुने गए. १९९१ में वे केंद्र में पीवी नर्सिंघ्राव की सरकार में पहली बार मंत्री बने थे जब मनमोहन सिंह वित्तमंत्री थे. आज मनमोहन सिंह सरकार में कमलनाथ वाणिज्य और ओद्योगिक मंत्री हैं.
छिंदवाड़ा में कांग्रेस का डंका: देश में ऐसी कम ही संसदीय सीटें होगी, जहाँ से कांग्रेस को कभी हार का सामना नहीं करना पड़ा हो. मात्र एक उपचुनाव के अपवाद को छोड़ दिया जाए तो मध्यप्रदेश का छिंदवाड़ा क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र रहा है, जहाँ से कांग्रेस को कभी पराजय का मुह नहीं देखना पड़ा. यह सही मायने में कांग्रेस का गढ़ है. अब तक 14 आम चुनावों में इस सीट से कांग्रेस को कभी शिकस्त नहीं मिली. यहाँ तक कि 1977 की जनता लहर में भी इस सीट से कांग्रेस का उम्मीदवार विजयी हुआ था. 

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