शुक्रवार, सितंबर 03, 2010

जब बहुगुणा से हारीं शीला

इतिहास से दिलचस्प मुकाबले
  1977 के लोकसभा चुनाव में लखनऊ संसदीय सीट पर मुकाबला दिलचस्प था. यह मुकाबला भी जो दो दिग्गजों के बीच था. शीला कौल कांग्रेस की प्रत्याशी थीं. हेमवती नंदन बहुगुणा भारतीय लोकदल के उम्मीदवार थे. 1957 से 1971 यानी दूसरी से पांचवी लोकसभा चुनावों तक इस क्षेत्र से तीन बार कांग्रेस की विजय हुई थी. पांचवी लोकसभा के लिए शीला कौल यहाँ से चुनी गयीं थीं. लखनऊ की जनता के लिए शीला कौल अनजान नहीं थीं. विपक्ष की निगाह शीला और लखनऊ संसदीय सीट पर थी. इस सीट पर विपक्ष की नजर इसीलिए भी थी क्योकि शीला और इंदिरा गाँधी के पारिवारिक रिश्ते थे. वे गांधी परिवार के काफी नजदीक थीं. विपक्ष का एकमात्र मकसद इस सीट से शीला को परास्त करना था. उनको हराने के लिए उसे एक मजबूत उम्मीदवार की तलाश थी. राजनीति का कुशल खिलाडी होने के कारण बहुगुणा  को शीला के खिलाफ लखनऊ से उतारा गया. विपक्ष अपने मिशन में सफल रहा. बहुगुणा को 242362 और शीला को 77017 मत मिले. करीब 165345 मतों के अंतर से शीला पराजित हुईं. लोकसभा चुनाव के पहले तक शीला की पहचान एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में थी. 1971 में वे कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी के रूप में पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुईं. 1980 में सातवीं लोकसभा के लिए लखनऊ सीट से विजयी हुईं. केंद्र में कांग्रेस की सरकार आई और शीला पहली बार केंद्रीय मंत्री बनीं. वे दो बार रायबरेली संसदीय सीट से भी निर्वाचित हुईं. 1995 में वे हिमाचल प्रदेश की गवर्नर बनीं. बहुगुणा ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत ट्रेड यूनियन से की थी. 1952 में वह पहली बार इलाहाबाद के करछना विधानसभा क्षेत्र से चुने गए. 1960  में गोविन्द बल्लभ पन्त के मुख्यमंत्री रहते वे पहली बार उत्तर  प्रदेश में उपमंत्री बने. 1967  में वे उत्तर प्रदेश सरकार में वित्त मंत्री और 1971 में केंद्र में संचार राज्य मंत्री बनाये गए.

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