शुक्रवार, सितंबर 24, 2010

विवाद के 157 साल

कुछ खास
    

विवाद की जड़ 
1528 :  मुगल बादशाह बाबर ने उस भूमि पर एक मस्जिद बनवाई। हिंदुओं का दावा है कि वह भगवान राम की जन्मभूमि है आैर वहां पहले एक मंदिर था।
1853 : विवादित भूमि पर सांप्रदायिक हिंसा संबंधी घटनाओं का दस्तावेजों में दर्ज पहला प्रमाण।
1859 : ब्रिाटिश अधिकारियों ने एक बाड़ बनाकर पूजास्थलों को अलग-अलग किया। अंदरूनी हिस्सा मुस्लिमों को आैर बाहरी हिस्सा हिन्दुओं को मिला।
1885 : महंत रघुवीर दास ने एक याचिका दायर कर रामचबूतरे पर छतरी बनवाने की अनुमति मांगी, लेकिन फैजाबाद की जिला अदालत ने अनुरोध खारिज किया।


देश का सबसे बड़ा मुकदमा
-1950, 16 जनवरी को मुकदमें की प्रक्रिया शुरू ।
-21 साल चली सुनवाई।
-40 अधिवक्ताओं ने इस मामले में जिरह की। (पश्चिम बंगाल के पूर्व सीएम आैर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ शंकर रे, भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा सुप्रीम कोर्ट के वकील रवि शंकर प्रसाद भी शामिल)
-89 गवाहों के 14,036 पृष्ठ के बयान दर्ज हुए। 
-इस दौरान 13 बार विशेष पूर्णपीठ तथा 18 न्यायाधीश बदले गए।
चार अहम बिंदु
1-विवादित धर्मस्थल पर मालिकाना हक किसका है ?
2-श्रीराम जन्मभूमि वहीं है या नहीं ?
3-क्या 1528 में मन्दिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनी थी ?
4-यदि ऐसा है तो यह इस्लाम के परंपराओं के खिलाफ है या नहीं ?
गुम्बद के नीचे में रखे गए रामलला
-1949 : 22/23 सितम्बर की रात में विवादित ढांचे के तीन गुम्बदों में से बीच वाले में रामलला की मूर्ति रख दी गई।
-1950 : 16 जनवरी  को रामलला की पूजा अर्चना के लिए को गोपाल सिंह ने फैजाबाद की जिला अदालत का दरवाजा खटखटाया।
-कोर्ट ने पूजा अर्चना की इजाजत दे दी। इसके साथ ही कोर्ट ने वहां रिसीवर भी नियुक्त कर दिया।
 -1959 : निर्मोही अखाडे़ ने रिसीवर की व्यवस्था समाप्त कर विवादित स्थल को उसे सौंपने की मांग की।
-1961 : सुन्नी वक्फ बोर्ड आैर मोहम्मद हाशिम अंसारी ने रामलला की मूर्ति हटाने के लिए वाद दायर किया।
-1989 : देवकी नन्दन अग्रवाल ने विवादित धर्मस्थल को रामलला विराजमान की संपत्ति घोषित करने की याचिका हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में दाखिल की।
-1989 : फैजाबाद में चल रहे सारे मामलों को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के हवाले किया गया।
-सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड ने अपने पक्ष से 36 गवाहों को पेश किया। इसमें आठ बहुसंख्यक सुमदाय से थे।
-वक्फ बोर्ड की तरफ से सर्वाधिक 288 पृष्ठ की गवाही सुरेश चन्द्र मिश्र की रही, जबकि सबसे कम 64 पृष्ठ में रामशंकर उपाध्याय ने अपना बयान दर्ज कराया।
मामले में नया मोड़
-1986 : 1 फरवरी  को जिला जज कृष्ण मोहन पाण्डेय ने विवादित ढांचे के गेट पर लगे ताले को खोलने का आदेश दिया।
-1986 : 3 फरवरी  को अंसारी ने हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में इस आदेश को  चुनौती दी।
-1992 : 6 दिसम्बर को विवादित मस्जिद ढहाई गई। देश भर में सांप्रदायिक दंगे, 2000 से अधिक लोगों की जानें गर्इं।
अधिग्रहण के खिलाफ मुकदमा
-1993 : 7 जनवरी  को केंद्र ने 67 एकड़ से अधिक जमीन का अधिग्रहण कर लिया।
-अधिग्रहण के इस अधिनियम के खिलाफ सेन्ट्रल सुन्नी बोर्ड, अक्षय ब्राह्चारी, हाफिज महमूद अकलाख आैर जामियातुल उलेमा-ए-हिन्द ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
-हाईकोर्ट ने सभी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट भेज दिया।
-1994 : 24 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले से जुड़े सन्दर्भ को राष्ट्रपति को वापस भेज दिया।
-1995 : जनवरी में हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में फिर से  सुनवाई शुरू हुई।
-2002 : मार्च में मामले को जल्दी निपटाने के लिए हाईकोर्ट का प्रतिदिन सुनवाई करने का फैसला।
-2003 : 5 मार्च का अधिग्रहीत परिसर में पुरातात्विक खुदाई के आदेश दिए।
-22 अगस्त को पुरातत्व विभाग ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी। खुदाई में प्राचीन मूर्तियों आैर कसौटी के पत्थरों के अवशेष मिलने का दावा।
-2006 : 11 अगस्त को मुस्लिम पक्ष की ओर से पुरातात्विक रिपोर्ट के खिलाफ आपत्तियों के सम्बंध में गवाहियों का क्रम समाप्त हुआ।
-2010 : 26 जुलाई को सुनवाई पूरी हुई। कोर्ट ने दोनो पक्षों के वकीलों को बुलाकर सुलह-समझौते से निपटाने का अवसर दिया।
-15 सितम्बर : इस सम्बंध में रमेश चन्द्र त्रिपाठी की अर्जी पेश।
-17 सितम्बर : न्यायमूर्ति एसयूखान आैर न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने त्रिपाठी की याचिका खारिज की। उन पर हर्जाने के रूप में 50 हजार रुपए जुर्माना ठोक दिया।
-पीठ के तीसरे न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने दोनों की राय से अपने को अलग किया। श्री शर्मा ने हर्जाने की राशि तीन हजार कर दी तथा पक्षकारों को सुलह के लिए 23 सितम्बर तक का समय दिया।
-21 सितम्बर : त्रिपाठी ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई से इनकार किया। याची को दूसरी खंडपीठ में जाने की सलाह दी।
-दूसरी पीठ ने हाईकोर्ट के 24 सितम्बर को फैसला सुनाए जाने के आदेश को 28 सितम्बर तक स्थगित कर दिया।


17 साल बाद लिब्राहान आयोग की रिपोर्ट
1992 :  16 दिसंबर को विवादित ढांचे को ढहाए जाने की जांच के लिए न्यायमूर्ति लिब्राहान आयोग का गठन। छह माह के भीतर जांच खत्म करने को कहा गया।
2009 : जून में 17 साल बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस बीच आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।

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