रविवार, जून 19, 2011

अब डैड के रुआब से बेखौफ हैं लाडले


बदलते दौर में बदल रही है पिता की भूमिका

फादर्स डे पर विशेष

वह दिन हवा हुए जब घर में पिता का रुआब चलता था। घर में पिता से बच्चे खौफ खाते थे। पिता और बच्चों के बीच सिर्फ पढ़ने पढ़ाने की बातें होती थीं। बच्चे मां के जरिए अपनी मांगें पिता तक पहुंचाते थे। आज के नए दौर में पिता की भूमिका और अपने बच्चों के साथ उनके रिश्तों में काफी बदलाव आया है। दोनो के बीच पनपे दोस्ताना रिश्ते,  जहां बच्चे के समग्र विकास में सहायक हैं, वहीं परिवार का माहौल बेहतर बनाने में भी मदद देते हैं। 

 चाइल्ड साइकोलॉजिस्टों की राय : इनका मानना है कि बच्चों के विकास में पिता का मित्रवत व्यवहार और उनका साथ अहम भूमिका निभाता है। समय के साथ रिश्तों में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। आजकल माता-पिता दोनों कामकाजी होते हैं। ऐसे में पिता की भूमिका और जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं। बच्चों से उनकी नजदीकी बढ़ी है। यह बच्चे के समग्र विकास के लिए बहुत जरूरी है। पिता को बच्चों से उनकी पढ़ाई, दोस्तों के बारे में बात करना चाहिए। इससे उनके संबंध मित्रवत रहेंगे। दरअसल, पिता की भूमिका का, उसके संबंधों का परिवार और बच्चे पर काफी प्रभाव पड़ता है। यदि पिता के बच्चों से संबंध दोस्ताना हो तो इससे परिवार का माहौल सकारात्मक रहता है। इसका बच्चे के विकास पर भी अच्छा असर पड़ता है। चाइल्ड साइकोलॉजिस्टों की राय है कि संबंधों में और प्रगाढ़ता लाने के लिए पिता को सप्ताहांत पर बच्चों को बाहर ले जाना चाहिए। उनके साथ उनकी रुचि के खेल वगैरह खेलने चाहिए। उनके शिक्षकों से मिलना चाहिए। इससे परिवार पर पिता की पकड़ मजबूत होगी और बच्चा उनसे खुल कर अपनी बात कर पाएगा। यह तब ज्यादा जरूरी हो जाता है जब महानगरों की व्यस्तताभरी जिंदगी के बीच पिता के पास बहुत ज्यादा समय वैसे भी नहीं होता ऐसे में बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरी करने के बाद कामकाज के बीच जो समय बचता है। उसे वह बच्चों के साथ हंस-खेल कर बिताना चाहते हैं।


क्या कहते हैं बच्चे : अर्णव ने कहा कि कभी-कभी वह एक सख्त पिता की भूमिका में होते हैं, लेकिन अधिकतर मैंने उन्हें मित्रवत व्यवहार करते हुए ही देखा है। वह मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं, पर अन्य मित्रों से अलग वह निस्वार्थ हैं। वह मेरा मार्गदर्शन करते हैं। जब मैं कोई फैसला नहीं ले पाता तो मुझे रास्ता बताते हैं। मैं उन्हें अपनी सारी बातें खुल कर बताता हूं। हां, टीवी देखने को लेकर जरूर उनसे थोड़ा डरता हूं। उनके घर पर नहीं रहने पर टीवी वगैरह ज्यादा चलाता हूं। उनके होने पर थोड़ा कम देखता हूं।

भारत में फादर्स डे के मायने
भारतीय परिप्रेक्ष्य में फादर्स डे का उतना महत्व उतना नहीं है, जितना पश्चिम में है। यहां यह सिर्फ उपहार व कार्ड आदि के व्यापार को बढ़ावा देने का एक साधन है। विदेशों में 17-18 साल की उम्र में ही बच्चे अभिभावकों से अलग रहने लगते हैं। इसलिए फादर्स डे, मदर्स डे आदि उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं, लेकिन भारत में अब भी स्थिति इससे उलट है। यहां आज भी बच्चे लंबे समय तक माता-पिता के साथ ही रहते हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा भारत के पास होली, दीपावली, रक्षाबंधन सहित खुद अपने इतने त्यौहार हैं कि उसे इन सब की जरूरत ही नहीं है। भारत में तो हर दिन फादर्स डे, मदर्स डे है, क्यों कि हम हमेशा उनके साथ रहते हैं तथा प्यार और भावनाएं उनके साथ बांटते हैं।

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