रविवार, अगस्त 21, 2011

पंडित नेहरू बनाना चाहते थे लोकपाल
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक स्वतंत्र निकाय का गठन करना चाहते थे।

पूर्व निर्वाचन आयुक्त जीवीजी कृष्णमूर्ति के मुताबिक भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक लोकपाल बनाने के मुद्दे पर 1962 में हुए तीसरे अखिल भारतीय विधि सम्मेलन में विचार-विमर्श हुआ था। यह विचार-विमर्श नेहरू की पहल पर हुआ था। उन्होंने कहा, 'लोकपाल की नियुक्ति का मुद्दा नेहरू के सुझाव के बाद आया था। उस सम्मेलन में ऐसे एक कार्यालय से जुड़ी रूपरेखा के बारे में विचार-विमर्श हुआ था। उन्होंने बताया, 'लोकपाल पर आयोजित सत्र की अध्यक्षता तत्कालीन एटॉर्नी जनरल एमसी सीतलवाड़ ने की थी और सर्वसम्मति से यह कहा गया कि आधिकारिक ¨और राजनीतिक, दोनों स्तरों पर भ्रष्टाचार के आरोपों से निपटने के लिए एक लोकपाल नियुक्त किया जाए।"


उन्होंने बताया कि ऐसे विधेयक के विवरण और विशेष प्रावधानों के बारे में विमर्श किया जाना था और एक बहस के लिए सुझाव भी मंगाए जाने थे, ताकि सरकार संसद में पेश करने के लिए इस पर विचार कर सके। कृष्णमूर्ति ने बताया कि इसके कुछ ही समय बाद सरकार का पूरा ध्यान 1962 में हुए चीन-भारत युद्ध की ओर चला गया और विधेयक पेश नहीं हो सका। उन्होंने बताया कि नेहरू के निधन के बाद इस मुद्दे पर से ध्यान हट गया ।  


साल 1993 से 1999 के दौरान निर्वाचन आयुक्त रहे कृष्णमूर्ति ने 12 से 14 अगस्त, 1962 को विज्ञान भवन में हुए इस विधि सम्मेलन में एक दस्तावेज प्रस्तुत किया था । इस सम्मेलन की अध्यक्षता पूर्व प्रधानमंत्री नेहरु ने की थी और इसमें तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी पी सिन्हा समेत लगभग 1,500 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। उन्होंने बताया कि नेहरू की सरकार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगने के बाद लोकपाल जैसा स्वायत्तशासी निकाय बनाने की पहल ने जोर पकड़ा था। उन्होंने कहा, 'देश के स्वतंत्र होने के बाद लोगों के बीच आशा थी कि देश में एक जिम्मेदार सरकार आएगी, जो पूरे समर्पण से काम करेगी।"


पूर्व निर्वाचन आयुक्त ने कहा, 'दुर्भाग्यवश, देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद राष्ट्र में कई घोटाले सामने आए।" कृष्णमूर्ति ने 1948 के जीप घोटाले और 1950 के मुद्गल मामले का संकेत दिया, जिसने कांग्रेस सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया था। नेहरु के 15 अगस्त, 1947 से 27 मई, 1964 तक के कार्यकाल के बीच 1960 में के डी मलाव्या घोटाला, धर्मतेज ऋण घोटाला और 1961 में साइकल घोटाला सामने आए थे। इसके बाद भ्रष्टाचार से निपटने के लिए तंत्र विकसित करने की जरूरत पर बल दिया जा रहा था । 


सम्मेलन में कृष्णमूर्ति ने जो दस्तावेज प्रस्तुत किया था, उसके मुताबिक लोकपाल को उसी तरह का निकाय बनाया जाना था, जैसा अन्ना हजारे की समिति की ओर से जन लोकपाल विधेयक में सुझाया गया है।