रविवार, जनवरी 30, 2011

पांच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनाव

कांग्रेस : गठजोड़ के रोड़े


 पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु समेत देश के पांच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों के लिहाज से क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन का मुद्दा कांग्रेस के लिए पेचीदा बना हुआ है।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस एक तरह से खुद को प्रमुख पार्टी के तौर पर प्रदर्शित कर रही है। उधर 2 जी स्पेक्ट्रम मामले में कठिनाई में आई द्रमुक की बात करें तो कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उनके पास तमिलनाडु में द्रमुक नीत गठजोड़ में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
ममता ने पिछले हफ्ते कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की थी, लेकिन दोनों नेताओं के बीच बातचीत के बारे में किसी भी तरफ से जानकारी नहीं दी गई। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव कुछ ही महीने बाद होने हैं और उनसे पहले नये साल में सोनिया-ममता की यह पहली मुलाकात है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि भी दिल्ली आ रहे हैं और वह अपने प्रदेश में गठबंधन पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से विचार विमर्श करेंगे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हाल ही में चेन्नई में कहा था कि उनका गठबंधन मजबूत है।
तमिलनाडु के कांग्रेस नेता भी निजी तौर पर अलग धुन अलाप रहे हैं। उनका कहना है कि द्रमुक केंद्र की संप्रग सरकार में तीसरी सबसे बड़ी घटक पार्टी है। इसलिए कांग्रेस प्रदेश में अन्य किसी गठजोड़ के बारे में नहीं सोच सकती। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, 'नेतृत्व चाहता है कि केंद्र सरकार सुरक्षित रहे आैर इसलिए हमें यह जानकर भी प्रदेश में द्रमुक के साथ रहना होगा कि वह 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में आलोचनाओं के घेरे में है।"
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस गठबंधन के लिए 294 में से 98 सीटें मांगने की प्रदेश कांग्रेस की योजना पर त्यौरियां चढ़ा ली हैं। इस मुद्दे पर प्रदेश के दोनों पार्टियों के नेताओं के बीच बहस सामने आ रही है।
इन दोनों प्रदेशों के अलावा केरल, असम और पुडुचेरी में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। केरल में कांग्रेस समान विचार वाले दलों के यूनाइटेड डेमोक्रेटिक  फ्रंट  की अगुवाई कर रही है और गत लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के बाद गठजोड़ इस बार काफी उत्साह में है। प्रदेश में इस गठजोड़ का चिर प्रतिद्वंद्वी सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक  फ्रंट  (एलडीएफ) है।
पुडुचेरी में कांग्रेस अपने दम पर सत्ता में है वहीं असम में यह बोडो दल के समर्थन से राज कर रही है। कांग्रेस महासचिव और  असम में पार्टी मामलों के प्रभारी दिग्विजय सिंह के अनुसार प्रदेश में गठबंधन के बारे में अभी तक कोई फैसला नहीं किया गया है। संकेत यह भी मिलता है कि पार्टी अपने दम पर ही किस्मत आजमा सकती है।

शनिवार, जनवरी 29, 2011

30 जनवरी : महात्मा गाँधी की पूरणतिथि......


...हिटलर के नाम बापू की पाती

पूरे जगत में सत्य, अहिंसा और भाईचारे का संदेश देते हुए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले बापू ने जर्मन तानाशाह एडॉल्फ हिटलर को भी अहिंसा का पाठ पढ़ाया था और उनसे युद्ध का रास्ता छोड़ने का आग्रह किया था।

'महात्मा गांधी कम्प्लीट वक्र्स-वल्यूम 70" में प्रकाशित बापू के 23 जुलाई 1939 को लिखे पत्र में उन्होंने जर्मन तानाशाह को अहिंसा का महत्व समझाने का प्रयास किया था। बापू ने 24 दिसम्बर, 1940 को हिटलर को एक विस्तृत पत्र लिखा था, जब जर्मनी और इटली पूरे यूरोप पर कब्जा करने की ओर बढ़ रहे थे।


बापू पर शोध करने वाले डा. कोएनराद इल्स्ट ने अपनी पुस्तक में लिखा, महात्मा गांधी ने अपने पहले पत्र की शुरुआत में हिटलर को 'मित्र" रूप में संबोधित किया था। एक वर्ग के लोगों की आलोचना के बावजूद हिटलर को लिखे दूसरे पत्र में 'मित्र" संबोधन को स्पष्ट करते हुए कहा था, 'आपको मित्र संबोधन कोई औपचारिकता नहीं है। मैं पिछले 33 वर्षो से दुनिया में मानवता और बंधुत्व के प्रसार के लिए काम करता रहा हूं, चाहे वह किसी जाति, वर्ग, धर्म या रंग से जुड़ा क्यों न हो। मैं सार्वभौम बंधुत्व के सिद्धांत में विश्वास करता हूं।"


हिटलर को लिखे पत्र में महात्मा गांधी ने जर्मन तानाशाह की मदद से भारत की स्वतंत्रता के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। उन्होंने लिखा, 'हम कभी नहीं चाहेंगे कि देश में ब्रिाटिश शासन का खात्मा जर्मनी की मदद से हो, बल्कि अहिंसा ऐसा रास्ता है जो दुनिया की सबसे हिंसक शक्तियों के गठजोड़ को भी पराजित करने की क्षमता रखता है।"


हिटलर को लिखे पहले पत्र में बापू ने कहा, 'मेरे कई मित्र मुझसे मानवता के नाते आपको पत्र लिखने का आग्रह करते रहे हैं। लेकिन मैं उनके अनुरोध को ठुकराता रहा हूं, क्योंकि मुझे ऐसा लगता था कि मेरा आपको पत्र लिखना उचित नहीं होगा, लेकिन युद्ध की स्थिति को देखते हुए मैंने अपनी सोच को पीछे रखते हुए पत्र लिखा है।"
गांधी ने अपने दूसरे पत्र में जर्मन तानाशाह को लिखा, 'हम आपके हथियारों के सफल होने की कामना नहीं कर सकते। जिस प्रकार हम ब्रिाटेन के उपनिवेशवाद का विरोध करते हैं, उसी प्रकार से हम जर्मनी में नाज़ीवाद के भी विरोधी हैं। ब्रिाटेन का हमारा विरोध करने का अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि हम ब्रिाटेन के लोगों को नुकसान पहुंचाना चाहते हों या युद्ध में पराजित करना चाहते हो। हम अहिंसा के रास्ते अपनी आजादी हासिल करना चाहते हैं।

शुक्रवार, जनवरी 28, 2011

-हर 12 मिनट में एक युवा करता है आत्महत्या

देश में हर चार मिनट में एक सुसाइड

देश में हर चार मिनट में कोई एक अपनी जान दे देता है। ऐसा करने वाले तीन लोगों में से एक युवा होता है। यानि देश में हर 12 मिनट में 30 वर्ष से कम आयु का एक युवा अपनी जान ले लेता है। ऐसा कहना है राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो का।


हाल ही में आए दुर्घटनाओं आैर आत्महत्या के कारण मौतों पर वर्ष 2009 के रेकार्ड के मुताबिक वर्ष 2009 में कुल 1,27,151 लोगों ने आत्महत्या की। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2009 में आत्महत्या के मामलों में 1.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2008 में आत्महत्या के 1,22,902 मामले थे जो वर्ष 2009 में बढ़कर 1,27,151 हो गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 'आत्महत्या करने वालों में 34.5 प्रतिशत की उम्र 15 से 29 साल के बीच थी, जबकि 34.2 प्रतिशत की उम्र 30 से 44 साल के बीच थी। दिल्ली और अरुणाचल प्रदेश में आत्महत्या करने वालों में 55 प्रतिशत से ज्यादा 15 से 29 वर्ष आयु वर्ग के थे।

इसके अनुसार, 'देश में रोज 223 पुरुष और 125 महिलाएं आत्महत्या करती हैं। इन महिलाओं में 69 घरेलू महिलाएं हैं। एक दिन में 73 लोग बीमारी के कारण और 10 लोग प्यार-मोहब्बत के चक्कर में आत्महत्या करते हैं।" 2009 में देश में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं पश्चिम बंगाल में हुई। उसके बाद आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक में। इन पांच राज्यों में आत्महत्या करने वालों की कुल संख्या देश में आत्महत्या करने वालों की कुल संख्या का 55.1 प्रतिशत है। दक्षिण भारत के राज्यों आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल को मिला कर देश में कुल आत्महत्या का 32.2 प्रतिशत इन्हीं राज्यों में होता है। वर्ष 2009 में दिल्ली में 1,477 लोगों ने आत्महत्या की । वहीं उत्तर प्रदेश में आत्महत्या करने वालों की संख्या काफी कम रही।

देश में 23.7 प्रतिशत लोग पारिवारिक परेशानी और 21 प्रतिशत बीमारियों के कारण आत्महत्या करते हैं। प्यार-मोहब्बत के चक्कर में सिर्फ 2.9 प्रतिशत और दहेज झगड़ों, ड्रग्स और गरीबी के कारण 2.3 प्रतिशत लोग आत्महत्या करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 'पुरूष सामाजिक और आर्थिक परेशानियों के कारण तथा महिलाएं व्यक्तिगत और भावनात्मक कारणों से आत्महत्या करती हैं।"

रिपोर्ट के रोचक तथ्य
-1999 के मुकाबले 2009 में आत्महत्याओं की संख्या में 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
-1999 में 1,10,587 लोगों ने और  2009 में 1,27,151 लोगों ने आत्महत्या की।
-आत्महत्या करने वालों में पुरूष स्त्री का अनुपात 64:36 था।
-14 साल की उम्र तक के बच्चों में लड़का और लड़की का अनुपात 51:49 रहा।
-45.8 प्रतिशत पुरूष तथा 24.6 प्रतिशत विवाहित महिलाओं ने की आत्महत्या।
-केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में आत्महत्या करने वालों में से 54.7 प्रतिशत 60 वर्ष से ज्यादा उम्र के थे।
-कुल 2,951 बच्चों ने आत्महत्या की। इनमे से 54.5 प्रतिशत मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और तमिलनाडु में हैं।
-43.3 प्रतिशत आत्महत्याएं चार बड़े शहरों बंगलुरू, चेन्नई, दिल्ली और मुंबई में हुई।


आत्महत्या मामलें में शीर्ष राज्य
-पश्चिम बंगाल : 14,648
-आंध्रप्रदेश : 14,500
-तमिलनाडु 14,424
- महाराष्ट्र 14,300
-कर्नाटक 12,195


आत्महत्या के कारण
33.6 प्रतिशत : जहर खा कर
31.5 प्रतिशत : फांसी लगाकर
9.2 प्रतिशत : आत्मदाह करके
6.1 प्रतिशत : पानी में डूब कर


व्यावसायिक : 1,354
बेरोजगारी : 2,472

शनिवार, जनवरी 15, 2011

१६ जनवरी : धार्मिक स्वतंत्रता दिवस



भारत की धार्मिक सहिष्णुता की दुनिया देती है दाद
दुनियाभर में आधुनिकता आैर सहिष्णुता की शिक्षा के प्रचार-प्रसार के बावजूद मजहबी कट्टरपन बढ़ रहा है। धार्मिक स्वतंत्रता पर हमले हो रहे हैं। हालांकि, भारत कभी कभार धर्म के नाम पर दंगे हो जाते हैं, लेकिन इनके पीछे धार्मिक स्वतंत्रता को दबाने का उद्देश्य नहीं होता। आज पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सूडान, इराक, यमन, नाइजीरिया आैर इनके अतिरिक्त बहुत से मुल्कों में हिंसा चरम पर है। इसके पीछे कहीं न कहीं धार्मिक कट्टरपन जिम्मेदार है।
अमेरिका जैसा देश भी भारत की धार्मिक सहिष्णुता को बेमिसाल मानता है। विकीलीक्स द्वारा सार्वजनिक किए गए एक गोपनीय अमेरिकी राजनयिक संदेश से भी विदेशों में भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि स्पष्ट हो जाती है। नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास से 2006 में भेजे गए इस राजनयिक संदेश में कहा गया था कि अमेरिका भारत की धर्म निरपेक्षता से सीख ले सकता है, जहां बहुधर्मीय बहु संस्कृति आै बहु जातीय समाज है तथा ये सभी स्वतंत्रता के साथ जीते हैं आैर अपने धार्मिक कार्यकलापों को स्वतंत्र होकर संपन्न करते हैं।


अप्रैल 2006 में भेजे गए इस संदेश को गार्जियन अखबार ने प्रकाशित किया जिसमें भारत की धर्म निरपेक्ष प्रकृति आैर धार्मिक सहिष्णुता की जमकर तारीफ की गई। इसमें कहा गया कि आज जब बहुत से देशों में धर्म के नाम पर चरमपंथ बढ़ रहा है, ऐसे में भारत सही दिशा की ओर अग्रसर है। धार्मिक स्वतंत्रता निगरानी समिति ने हाल ही में भारत में भी धार्मिक स्वतंत्रता का अध्ययन किया आैर कहा कि इस मामले में कुल मिलाकर भारत की स्थिति अच्छी है।


समिति ने कहा कि भारत के लोग उदार हैं आैर अल्पसंख्यक निर्भीक होकर अपने धर्म का पालन करते हैं। उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है। निगरानी समिति ने हालांकि यह भी कहा कि कुछ राज्य सरकारें धर्म परिवर्तन विरोधी कानून बनाकर धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करने की कोशिश करती हैं।



गुरुवार, जनवरी 13, 2011

एक पर्व, नाम अनेक


संक्रांति संस्कृत का शब्द है, जो सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश बताता है। भारत में मनाए जाने वाले पर्वों में यह एकमात्र ऐसा पर्व है, जो सौर कैलेंडर पर आधारित है। इसकी वजह से यह पर्व हर साल 14 जनवरी को हर मनाया जाता है। शेष सभी पर्व चंद्र कैलेंडर पर आधारित होते हैं।


वैज्ञानिक फैक्टर : हिंदू ज्योतिष के अनुसार, कुल बारह राशियां होती हैं। इस प्रकार संक्रांति भी 12 हुईं। लेकिन मकर संक्रांति तब मनाई जाती है, जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। देश में मनाए जाने वाले अन्य पर्वों की तारीख बदलती रहती है, क्योंकि वह चंद्र कैलेंडर पर आधारित होते हैं आैर चंद्रमा की गति सूर्य की तुलना में अधिक होती है।  दरअसल, पृथ्वी को कर्क आैर मकर रेखाएं काटती हैं। जब सूर्य कर्क रेखा को पार करता है तो पृथ्वी के आबादी वाले हिस्से में उसका प्रकाश कम आता है। इसी दौरान धनु में सूर्य का संचार होने पर सर्दी अधिक हाती है, जबकि मकर में सूर्य का संचार होने पर सर्दी कम होने लगती है। मकर संक्राति से गर्मी तेज होने लगती है। उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद, वाराणसी आैर हरिद्वार में गंगा के घाटों पर तड़के ही श्रद्धालु पहुंच कर स्नान करते हैं। उत्तराखंड में इस पर्व की खास धूम होती है। इस दिन गुड़, आटे आैर घी के पकवान पकाए जाते हैं आैर इनका कुछ हिस्सा पक्षियों के लिए रखा जाता है।


मकर संक्रांति भारत के अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस पर्व को 'तिलगुल" कहा जाता है। महाराष्ट्र में इस पर्व पर घर के लोग सुबह पानी में तिल के कुछ दाने डाल कर नहाते हैं। महिलाएं रंगोली सजाती हैं आैर पूजा की जाती है। पूजा की थाली में तिल जरूर रखा जाता है। इसी थाली से सुहागन महिलाएं एक दूसरे को कुंकुम, हल्दी आैर तिल का टीका लगाती हैं। हल्दी कुंकुम का सिलसिला करीब 15 दिन चलता है।


'सिख मकर संक्रांति को माघी कहते हैं। इस दिन उन 40 सिखों के सम्मान में सिख गुरुद्वारे जाते हैं जिन्होंने दसवें गुरू गोविंद सिंह को शाही सेना के हाथों पकड़े जाने से बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दी थी। इस दिन यहां खीर जरूर बनती है। हिमाचल प्रदेश आैर हरियाणा में भी माघी की धूम होती है।


बिहार में 14 जनवरी को सकरात मनाई जाती है। इस दिन लोग सुबह सवेरे स्नान के बाद पूजा करते हैं। इसके अगले दिन यहां मकरात मनाई जाती है, जिस दिन खिचड़ी का सेवन किया जाता है। बुंदेलखंड आैर मध्यप्रदेश में भी इस पर्व को सकरात कहा जाता है। गुजरात में यह पर्व दो दिन मनाया जाता है। 14 जनवरी को उत्तरायण आैर 15 जनवरी को वासी उत्तरायण। दोनों दिन पतंग उड़ाई जाती है।


मकर संक्रांति को कर्नाटक में सुग्गी कहा जाता है। इस दिन यहां लोग स्नान के बाद संक्रांति देवी की पूजा करते हैं, जिसमें सफेद तिल खास तौर पर चढ़ाए जाते हैं। पूजा के बाद ये तिल लोग एक दूसरे को भेंट करते हैं। केरल के सबरीमाला में मकर संक्र ांति के दिन मकर ज्योति प्रज्ज्वलित कर मकर विलाकू का आयोजन होता है। यह 40 दिन का अनुष्ठान होता है, जिसके समापन पर भगवान अयप्पा की पूजा की जाती है।



उड़ीसा में मकर संक्रांति को मकर चौला आैर पश्चिम बंगाल में पौष संक्रांति कहा जाता है। असम में यह पर्व बीहू कहलाता है। यहां इस दिन महिलाएं आैर पुरुष नए कपड़े पहन कर पूजा करते हैं आैर ईश्वर से धनधान्य से परिपूर्णता का आशीर्वाद मांगते हैं। गोवा में इस दिन वर्षा के लिए इंद्र देवता की पूजा की जाती है ताकि फसल अच्छी हो। आंध्र प्रदेश में भी यह पर्व चार दिन मनाया जाता है। पहले दिन 'भोगी" दूसरे दिन 'पेड्डा पांडुगा" (मकर संक्रांति) तीसरे दिन कनुमा आैर चौथे दिन मुक्कानुमा मनाया जाता है। भोगी के दिन घर का पुराना आैर अनुपयोगी सामान निकाला जाता है आैर शाम को उसे जलाया जाता है


थाई माह की शुरुआत
तमिलनाडु में यह पर्व पोंगल कहलाता है। इस दिन से तमिलों के थाई माह की शुरुआत होती है। इस दिन तमिल सूर्य की पूजा करते हैं। उनसे अच्छी फसल के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। यह पर्व राज्य में चार दिन मनाया जाता है।

गुरुवार, जनवरी 06, 2011

आंध्रप्रदेश : तनाव की चपेट में

दक्षिणी राज्य आंध्रप्रदेश में अलग तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर गठित श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई है.







श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट


-आंध्रप्रदेश को ज्यों का त्यों एक संगठित राज्य रखा जाए.
-सीमांध्रा और तेलंगाना में विभाजित किया जाए और हैदराबाद को केंद्र प्रशासित बनाया जाए.
-रायल तेलंगाना और तटीय आंध्र क्षेत्र में विभाजन किया जाए, जिसमें हैदराबाद, रायल तेलंगाना का हिस्सा हो.
-सीमांध्रा और तेलंगाना में विभाजित किया जाए जिसमें हैदराबाद महानगर को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए. इस केंद्र शासित प्रदेश में तीन ज़िलों रंगा रेड्डी, महबूबनगर और नलगोंडा को शामिल किया जाए.
-सीमांध्रा और तेलंगाना की मौजूदा सीमाओं को बरकरार रखते हुए विभाजित किया जाए, जिसमें हैदराबाद तेलंगाना की राजधानी हो और सीमांध्रा की नई राजधानी बनाई जाए.
-राज्य को एक रखा जाए, साथ ही तेलंगाना क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक विकास और राजनैतिक सशक्तिकरण के लिए कुछ संवैधानिक और वैधानिक क़दम उठाए जाएं और तेलंगाना क्षेत्रीय काउंसिल का गठन किया जाए.

आंध्रप्रदेश इस समय आशा और आशंका की मिली जुली भावनाओं और तनाव की चपेट में है. प्रदेश का बँटवारा करके अलग तेलंगाना राज्य बनाने की मांग पर विचार के लिए बनाई गई श्रीकृष्ण समिति ने जब अपनी रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम को सौंपी तो राज्य दम साधे ये प्रतीक्षा कर रहा था कि इस पर किस तरह की प्रतिक्रिया सामने आएगी. क्योंकि इस समिति की रिपोर्ट का ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया गया है और कोई यह नहीं जानता की समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा क्या है, कोई भी अभी इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता.


बुधवार, जनवरी 05, 2011

आहत मीरा


सदन के सुचारू संचालन के लिए लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार गुजरे वर्ष के तीनों सत्रों में सदस्यों से बार-बार अपील करती रहीं, लेकिन सांसदों के कानों पर जूं नहीं रेंगी। संसद में व्यवधान तथा जबरन स्थगन के चलते न केवल 269 घंटे का समय व्यर्थ गवांया गया, बल्कि अरबों रुपए की करदाताओं की गाढ़ी कमाई को भी स्वाहा कर दिया...

रविवार, जनवरी 02, 2011

2010 : संसद का लेखाजोखा

सालभर आहत रहीं मीरा

सदन के सुचारू संचालन के लिए लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार गुजरे वर्ष के तीनों सत्रों में सदस्यों से बार-बार अपील करती रहीं, लेकिन सांसदों के कानों पर जूं नहीं रेंगी। संसद में व्यवधान तथा जबरन स्थगन के चलते न केवल 269 घंटे का समय व्यर्थ गवांया गया, बल्कि अरबों रुपए की करदाताओं की गाढ़ी कमाई को भी स्वाहा कर दिया। संसद के बजट सत्र, मानसू़त्र सत्र आैर शीतकालीन सत्र को मिलाकर वर्ष भर में कुल 80 बैठकें हुई। इनमें से व्यवधान आैर स्थगन के चलते 27 दिन कोई कामकाज नहीं हुआ। इस प्रकार लोकसभा ने 33 फीसदी यानी करीब एक तिहाई समय बर्बाद कर दिया।


बजट सत्र : बजट सत्र में लोकसभा की 32 बैठकें हुई, जिनकी कुल अवधि 137 घंटे तथा 51 मिनट थी। सरकार ने 27 विधेयक पेश किए आैर 21 विधेयक पारित किए गए, लेकिन बजट सत्र के दूसरे चरण में 17 दिन में से केवल नौ दिन ही प्रश्नकाल हो सका। शुरुआत से ही सदस्यों से सदन को सुचारू रूप से चलाने की बार-बार अपील करने वाली स्पीकर मीरा कुमार ने इस बात पर बेहद चिंता जताई थी कि लगातार व्यवधान के चलते प्रश्नकाल प्रभावित हुआ है। उन्होंने बेहद आहत स्वर में कहा था कि इस प्रकार का व्यवधान संसद जैसी महत्वपूर्ण संस्था को अप्रासंगिक बना देगा।


मानसून सत्र : 26 जुलाई से शुरू होकर 31 अगस्त तक चले संसद के मानसून सत्र में भी कामकाज की कमोबेश यही स्थिति रही। 136 घंटे तथा 10 मिनट की समयावधि में सिमटी लोकसभा की 26 बैठकों में से 11 दिन प्रश्नकाल बाधित हुआ। सूचीबद्ध 460 तारांकित सवालों में से केवल 46 सवालों के ही सदन में जवाब दिए जा सके। इस प्रकार मौखिक प्रश्नों का आैसत बजट सत्र में 2.37 सवाल प्रतिदिन से आैर नीचे गिरकर 1.91 पर पहुंच गया। मानसून सत्र में महंगाई, पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि, कॉमनवेल्थ गेम्स आैर अवैध खनन को लेकर विपक्ष ने भारी हंगामा किया। इस सत्र में भी स्पीकर ने यहां तक कहा, 'राजनीतिक दलों आैर सदस्यों को निजी तौर पर संसदीय लोकतंत्र को हो रही इस क्षति पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। हम यहां अनगिनत देशभक्त भारतीयों के बलिदानों की बदौलत बैठे हैं। मैं सभी संंबंधित पक्षों से अपील करती हूं कि सदन की गरिमा की रक्षा करें।" लेकिन बजट सत्र आैर मानसून सत्र में की गई स्पीकर की इन अपीलों का सदस्यों पर कोई असर नहीं हुआ।


शीतकालीन सत्र : 2 जी स्पैक्ट्रम पर बना गतिरोध सत्र की समाप्ति तक बरकरार रहा। इस पर हुए हंगामे के कारण करदाताओं की करीब डेढ़ अरब रुपए रही की गाढ़ी कमाई पर पानी फिर गया। 2 जी स्पैक्ट्रम, आदर्श हाउसिंग सोसायटी आैर कॉमनवेल्थ गेम्स के घोटालों के मामलों की संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने पर अड़े विपक्ष के हंगामे के कारण नौ नवम्बर से शुरू हुए शीतकालीन सत्र में कोई खास कामकाज नहंी हुआ।


बैठकें स्थगित, गाढ़ी कमाई स्वाहा


-एक सत्र की एक दिन की कार्रवाई पर 7.65 करोड़ रुपए का खर्च
-संसद के बजट सत्र, मानसू़त्र सत्र आैर शीतकालीन सत्र को मिलाकर वर्ष भर में कुल 80 बैठकें हुई।


-इनमें से व्यवधान आैर स्थगन के चलते 27 दिन कोई कामकाज नहीं हुआ। लोकसभा में 33 फीसद समय व्यर्थ

-2010 : लोकसभा में 33 फीसदी यानी करीब एक तिहाई समय बर्बाद हुआ

-बजट सत्र : 69 घंटे आैर 51 मिनट का समय गंवाया

-मानसून सत्र : 45 घंटों के अमूल्य समय पर पानी फिर गया।

-शीतकालीन सत्र : 23 दिन में से 22 दिन की कार्यवाही ही नहीं हुई।


-पूरे सत्र में 620 तारांकित प्रश्न सूचीबद्ध थे, लेकिन केवल 76 सवालों का ही मंत्री प्रश्नकाल में जवाब दे पाए। कुछ खास


-इस प्रकार आैसतन प्रतिदिन 2.37 सवालों को ही प्रश्नकाल में लिया गया।