शनिवार, मार्च 24, 2012

..जज को बताना चाहते थे लाहौर षड्यंत्र का सच

 


शहीद-ए-आजम के शहादत दिवस पर विशेष
शहीद-ए-आजम भगत सिंह लाहौर षड्यंत्र मामले यानी कि सांडर्स हत्याकांड में अपने मकसद को साबित करने और मामले की उचित सुनवाई के लिए जहां मौके का मुआयना करना चाहते थे, वहीं वह गवाहों से जिरह भी करना चाहते थे।
चार नवम्बर, 1929 को भगत सिंह द्वारा लाहौर के विशेष मजिस्ट्रेट को लिखे गए पत्र में इन बातों का खुलासा होता है। भगत सिंह ने अदालत में मुकदमे की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए न्यायाधीशों के सामने पेश नहीं होने का फैसला किया था, लेकिन साथ ही वह चाहते थे कि यदि ब्रितानिया हुकूमत मुकदमे को निष्पक्ष साबित करना चाहती है तो वह उन्हें उस मौके का मुआयना करने दे जहां ब्रिटिश पुलिस अधिकारी सांडर्स को क्रांतिकारियों ने मौत के घाट उतारा था। भगत सिंह ने लाहौर के विशेष मजिस्ट्रेट को यह पत्र सांडर्स हत्याकांड में अपने और अपने साथियों राजगुरु एवं सुखदेव के खिलाफ धारा 121ए, 302 और 120बी के तहत दर्ज मामले के संबंध में लिखा था।
उल्लेखनीय है कि लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और शिवराम ने पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट को मारने की योजना बनाई थी। उन्होंने 17 दिसम्बर, 1928 को शाम करीब सवा चार बजे अपनी योजना को अंजाम दिया, लेकिन गलत पहचान के चलते स्कॉट की जगह सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन पी सांडर्स मारा गया। इस दौरान चानन सिंह नाम का एक हेड कांस्टेबल भी मारा गया था, जो क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए दौड़ रहा था।
इनसेट..
वक्त से पहले दे दी गई फांसी
सांडर्स हत्याकांड में अदालत ने राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाई थी। 24 मार्च 1931 की सुबह फांसी दी जानी थी, पर ब्रितानिया हुकूमत ने नियमों का उल्लंघन कर एक रात पहले ही 23 मार्च की शाम करीब सात बजे तीनों को चुपचाप लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर चढ़ा दिया था। तीनों क्रांतिकारी लाहौर सेंट्रल जेल में ये तीनों महान क्रांतिकारी हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे। इस मामले को लाहौर षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है।
इनसेट..
भगत सिंह की पाती..
याचिकाकर्ता (आरोपी) अदालत में अपना प्रतिनिधित्व नहीं करने जा रहे, लेकिन यदि सरकार मुकदमे को लेकर निष्पक्ष है तो वह उन्हें कथित घटना के संदर्भ में घटनास्थल (सांडर्स की हत्या वाली जगह) और आसपास के इलाकों का मुआयना कराए। सरकार उन्हें मौके के मुआयने के लिए उचित व्यवस्था उपलब्ध कराए और गवाहों से भी जिरह करने का मौका दे। जब तक उन्हें जिरह और मौके के निरीक्षण का अवसर नहीं मिलता तब तक मामले की सुनवाई स्थगित रखी जाए।