गुरुवार, जून 16, 2011

सूखे की चपेट में 54,000 गांव

वल्र्ड डे टू कॉमबैट डेजर्टिफिकेशन एंड ड्राउट पर विशेष
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में 54,000 गांव ऐसे हैं, जहां सूखे की समस्या के कारण पीने का पानी तक नहीं मिलता है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 1987 के सूखे से देश के 12 राज्यों 10 करोड़ लोग और छह करोड़ मवेशी प्रभावित हुए थे। उस साल फसलों के उत्पादन में 17 प्रतिशत की कमी आई थी।
 एक शोध के मुताबिक देश प्रत्येक 32 सालों में एक भयंकर सूखे का सामना करता है। हर तीसरे साल देश में सामान्य सूखे की स्थिति रहती है। सूखा से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य हैं कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और  झारखंड। हमारा देश हर तीसरे साल सूखे का सामना करता है। राजस्थान का एक बड़ा भाग गर्म मरुस्थल है तो जम्मू-कश्मीर और हिमाचल के बड़े भाग में बर्फ का मरुस्थल पसरा हुआ है। ऐसे में बढ़ती बंजर भूमि और सूखा के कारण एक दिन ऐसा भी आ सकता है, जब हमें खाने को अनाज मिलना भी मुश्किल हो जाए।

एशिया में 1.7 अरब हेक्टयर भूमि असंचित : संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक एशिया में 1.7 अरब हेक्टयर भूमि संचित नहीं है। इसमें कम सिंचाई वाले और सूखा क्षेत्र शामिल है। संघ ने इससे निपटने के लिए एक 'प्लान ऑफ एक्शन" बनाया। भारत, पाकिस्तान, चीन, नेपाल एवं श्रीलंका सहित एशिया के 24 देशों ने सूखा और मरुस्थलीकरण को रोकने के इस प्लान ऑफ एक्शन को लागू किया है। भारत सरकार ने सूखे और बढ़ते मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर कई योजनाएं लागू की हैं। इनमे तीन सबसे महत्वपूर्ण हैं वर्ष 1974 में लागू सूखा प्रभावित क्षेत्र कार्यक्रम, वर्ष 1978 में लागू मरुस्थल विकास कार्यक्रम और वर्षा आधारित क्षेत्रों के वर्ष 1990 में लागू राष्ट्रीय जलसंभरण कार्यक्रम।


क्या करें और क्या नहीं करें
-सूखे से निपटने के लिए हमें सिंचाई के क्षेत्र को बढ़ाना होगा़
-सिंचाई की नई तकनीकों को अपनाना होगा, जिससे सिंचाई कम पानी में ही पूरा हो सके
-रासायनिक उर्वरकों के इस्मेताल को रोकना होगा
-उर्वरकों के लगातार प्रयोग से मिट्टी की पानी सोखने की शक्ति कम हो जाती है। ऐसे में बार-बार सिंचाई की जरूरत होती है, जिसमें ज्यादा पानी बरबाद होता है



1977  में सजग हुई दुनिया : वर्ष 1977 में मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए हुई संयुक्त राष्ट्र संघ की एक गोष्ठी में इसे मूर्त रूप दिया गया। इसकी शुरुआत दुनिया के सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लोगों की मदद करने के लिए की गई। इसके बाद वर्ष 1991 से लागू संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण कार्यक्र म में इस पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। इस मामले में हमें इसाइल से सबक लेना चाहिए। उसने रेगिस्तान के बीच 'ग्रीनबेल्ट" विकसित किए हैं जिसके बाद वहां वर्षा की मात्रा में 25 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है।



'हमें देश की नदियों को बचाना होगा। जो जमीनें बंजर हैं, वहां कम पानी के इस्तेमाल से उगने वाले पौधों की खेती आैर पेड़ लगाने को बढ़ावा देना होगा। इससे भू-जल स्तर में सुधार होगा और सूखे की समस्या काफी हद तक हल हो जाएगी।"    
                                                                                मेधा पाटकर 

                                                   
'अगर हम देश में बाढ़ की कारक नदियों को नहरों के माध्यम से सूखा प्रभावित क्षेत्र से जोड़ दें तो हमें एक साथ बाढ़ और  सूखा दोनों से निजात मिल जाएगी।                                                               डॉ.  अब्दुल कलाम

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