मंगलवार, फ़रवरी 15, 2011

राह दिखाते शास्त्री जी.....

देश के दूसरे प्रधानमंत्री की जीवन शैली आज के दौर में दूसरे राजनेताओं के लिए एक नेक राह दिखाने का काम कर सकती है। उनके बेटे सुनील शास्त्री द्वार लिखी गई पुस्तक 'लाल बहादुर शास्त्री पास्ट फारवर्ड" के कुछ अंश...


'स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जब बाबूजी फैज़ाबाद जेल में बंद थे आैर मां उनके लिए दो आम छिपा कर ले गई थी, तब वह काफी नाराज हुए थे। वह इसलिए नाराज हुए थे, क्योंकि कैदियों को बाहर से भोजन उपलब्ध कराना अवैध है। लालबहादु ने रेल मंत्री के रूप में ट्रेनों में एक सामान्य नागरिक की तरह यात्रा की। पुस्तक में बचपन की कई घटनाओं का जिक्र किया है। इसी संदर्भ में एक घटना का जिक्र करते हुए सुनिल ने लिखा, 'मैं बचपन में बड़ी गाड़ी में सफर करने का सपना देखा करता था जो मेरे पिता के दर्जे के अनुरूप हो। बाबूजी को उपयोग के लिए सेवरले अंपाला कार मिली थी।"

'एक दिन मैंने बाबूजी के निजी सचिव से सेवरले अंपाला गाड़ी को घर लाने का आग्रह किया। हमने कार चालक से चाबी मांगी और  उसे चला कर ले गए।" बाबूजी ने कार के चालक से नाराजगी भरे अंदाज में पूछा, 'क्या आप अपने साथ लॉग बुक रखते हैं।" जब चालक ने नकारात्मक जबाव दिया तब उन्होंने पिछले दिन कार द्वारा तय की गई दूरी की जानकारी मांगी। चालक ने जब दूरी 14 किलोमीटर बताई जब उन्होंने मां से निजी सचिव को इसका भुगतान करने को कहा जो राशि सरकारी खाते में गई।

पुस्तक में एक घटना का जिक्र है कि लालबहादुर शास्त्री शायद जीवन में उस दिन पहली बार रोए थे। शास्त्री भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में हुए युद्ध के दौरान घायल सैनिकों को देखने अस्पताल गए थे। अस्पताल में एक घायल सैनिक ने कहा कि वह आज उठने की स्थिति में भी नहीं है, ताकि वह अपने प्रिय प्रधानमंत्री को 'सलाम" कर सके। इतना सुनते ही वह फूट फूट कर रोने लगे थे।

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