गुरुवार, जून 23, 2011

शास्त्री के निधन पर एक देश की 'झूठी अफवाह"

 गुप्तचर रिपोर्ट की खुलासा  ताशकंद में चार दशक पहले पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन के मामले में एक देश ने झूठी अफवाह फैलाई, जिसके अब भारत के साथ अच्छे संबंध है। यह संकेत केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से पेश गोपनीय दस्तावेजों से मिलते हैं।
 मुख्य सूचना आयुक्त सत्यानंदा मिश्र ने निर्देश दिया था कि शास्त्री की मौत से संबंधित गोपनीय दस्तावेजों को सीलबंद लिफाफे में उनके समक्ष पेश किया जाए। यद्यपि प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस निर्देश पर केवल एक पन्ने का दस्तावेज पेश करते हुए कहा कि गोपनीय श्रेणी में उसके पास केवल यही दस्तावेज है।    दस्तावेज को देखने के बाद मिश्रा ने कहा कि दस्तावेज का पूर्व प्रधानमंत्री की मौत से कोई सीधा संबंध नहीं है। मिश्रा ने कहा कि दस्तावेज में विभिन्न सूत्रों से एकत्र गुप्तचर जानकारियां हैं। इसमें कहा गया है कि एक देश शास्त्री की मौत पर झूठी अफवाह फैला रहा था।
 
उन्होंने बिना किसी देश का नाम लिए बिना कहा कि इसमें जिस देश का उल्लेख है उसके साथ तत्कालीन समय में हमारे अच्छे संबंध नहीं थे, लेकिन अब निश्चित रूप से उसके साथ अच्छे संबंध है। इस दस्तावेज को यदि जारी कर दिया गया तो इससे निश्चित रूप से इन संबंधों पर असर पडे़गा। यह मामला 'सीआईएज आई आन साउथ एशिया" के लेखक अनुज धर की ओर से सूचना के अधिकार के तहत दायर आवेदन का है, जिसमें उन्होंने वर्ष 1966 मे ताशकंद में शास्त्री की मौत से संबंधित प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा रखे गए गोपनीय दस्तावेज को जारी करने की मांग की थी। इस पर प्रतिक्र या देते हुए भाजपा नेता एवं शास्त्री के पोते सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि भारत में सभी गलत चीजों के लिए एक बार पाकिस्तान या अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जिम्मेदार ठहराने की आदत थी।

उन्होंने पूछा कि यदि गत चार दशकों से इसे लेकर झूठी अफवाह थी तो सरकार गोपनीय रिकार्डों को जारी करने से परहेज क्यों कर रही थी।  उन्होंने कहा कि संदेह झूठी अफवाह पर नहीं है। संदेह अतिसंवेदनशील हालात में शास्त्रीजी की असामयिक निधन के कारण है। इस सुनवाई के दौरान मिश्रा ने यहा भी कहा कि शास्त्री का निधन हुए चार दशक बीत चुके हैं आैर यदि सरकार ने इस मामले में श्वेतपत्र पहले ही जारी कर दिया होता तो षड्यंत्र के ये सिद्धांत समाप्त हो सकते थे, लेकिन उसने इस मामले पर चुप्पी साध ली। सिंह ने कहा कि यह मानने के लिए प्रर्याप्त कारण हैं कि उनकी मृत्यु स्वाभाविक नहीं थी क्योंकि उनका पार्थिक शरीर नीला पड़ गया था, उनका कोई पोस्टमार्टम नहीं कराया गया, निधन के बाद उनका खानसामा अचानक गायब हो गया तथा आखिरी समय में प्रधानमंत्री के लिए निर्धारित होटल का कमरा बदला जाना। 
 खानसामा के बारे में यह माना जाता है कि वह पाकिस्तान भाग गया था। आवेदन दायर करने वाले धर ने कहा कि शास्त्री के निधन के पीछे किसी अन्य देश का हाथ होने की जो बात सूचना में कही गयी है उसकी जड़ें तत्कालीन सोवियत संघ की गुप्तचर एजेंसी केजीबी तक हो सकती है। केजीबी इस मामले से अपना पल्ला झाड़ना चाहती थी और उस समय सीआईए का हौवा भारत पर हावी था। पाकिस्तान के साथ वर्ष 1965 के युद्ध के बाद शास्त्री पाकिस्तान के  तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान से मिलने तत्कालीन सोवियत संघ के ताशकंद गए थे। 11 ताशकंद घोषणा पर हस्ताक्षर होने के बाद जनवरी 1966 को उनका संदिग्ध परिस्थिति में निधन हो गया। उनके परिवार ने इसके पीछे साजिश होने के आरोप लगाते हुए शास्त्री का पोस्टमार्टम कराने की मांग की थी, लेकिन ऐसा नहीं कराया गया।

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