शुक्रवार, अगस्त 06, 2010

गढ़ में हारे सोमदा

इतिहास से दिलचस्प मुकाबले

यह चुनाव है भैया, कुछ भी हो सकता है. जादवपुर से अब तक आठ बार लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके सोमनाथ चटर्जी को भी 1984 में अपने ही गढ़ में हार का स्वाद चखना पड़ा. सोमदा आठवीं लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की  जादवपुर संसदीय सीट से तब कांग्रेस की 'फायर ब्रांड' और अधिक युवा प्रत्याशी ममता बनर्जी से चुनाव हारे. ममता का यह पहला चुनाव था. उस समय वह राजनीति में अपनी जमीन तलाश रही थीं, जबकि सोमदा राजनीति के मंझे खिलाडी थे. सोमदा के लिए भी यह कभी न भूल पाने वाली हार थी, तो ममता के लिए एतिहासिक जीत.
परिणाम से पहले तक इस संसदीय सीट पर किसी की नजर नहीं थी. सोमदा का ऐसा कद था कि उनकी हार के बारे में लोगों ने सोचा तक नहीं था. यह मुकाबला दो दिग्गजों के बीच नहीं था. इसीलिए लोगों की निगाह भी इस ओर नहीं गयी. तब तक किसी को यह आभास नहीं था कि राजनीति का ककहरा सीख रहीं ममता राजनीति के दिग्गज सोमदा पर भारी पड़ेंगी. राजनीतिक पंडितो की गढ़नायें धरी की धरी रह गयीं. इस चुनाव में सोमनाथ पराजित हुए. ममता रातों रात एक बड़ी नेता हो गयीं. एक जीत ने उनके कद को बड़ा कर दिया.
1970 के दशक में ममता ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस से की. अमेरिका से डॉक्टरेट की डिग्री लेने के बाद वह पश्चिम बंगाल की राजनीति में सक्रिय हो गयीं. प्रखर व्यक्तिव की धनी ममता ने बहुत जल्द राजनीति में अपना एक स्थान बना लिया. 1997 में ममता का कांग्रेस से मोहभंग हो गया और उन्होंने इस पार्टी से किनारा कर लिया. उन्होंने अपनी त्रिदमूल कांग्रेस पार्टी बनाई. अपने करीब तीन दशक के राजनीतिक करियर में वह छह बार लोकसभा पहुँचीं. 1989 में वे पहली बार कांग्रेस विरोधी लहर में पश्चिम बंगाल के जादवपुर सीट से चुनाव हारीं. इस हार के बाद उन्होंने दक्षिण कोलकाता संसदीय सीट से चुनाव लड़ा. वे यहाँ से पांच बार विजयी हुईं. ममता पहली बार 1991 में प्रीवी नरसिंहराव सरकार में केंद्रीय संसाधन मंत्री बनीं. 1999 में एनडीए के साथ जुड़ीं और इस सरकार में रेलमंत्री बनीं. सिंगूर, नंदीग्राम में किसानों की हक़ की लड़ाई में वे काफी समय तक सुर्ख़ियों में रहीं.

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