शनिवार, दिसंबर 25, 2010

भारतीय संसद : हंगामे का नया इतिहास

 पिछले कई सालों की तरह इस साल भी संसद के सत्रों में  हंगामा, व्यवधान  स्थगन का सिलसिला जारी रहा, लेकिन इस महीने 13 तारीख को संपन्न शीतकालीन सत्र का पहला दिन छोड़ कर पूरा की पूरा हंगामे की भेंट चढ़ जाने से भारतीय संसद का एक नया इतिहास लिखा गया।
-आंकड़ें बताते हैं कि शीतकालीन सत्र 1985 में आठवीं लोकसभा से संपन्न पिछले 82 सत्रों में पहला ऐसा सत्र था जिसमें संसद के निचले सदन लोकसभा ने 22 बैठकों के उपलब्ध समय में से मात्र सात घंटे 37 मिनट यानी 5.5 फीसदी आैर राज्यसभा ने मात्र दो घंटे 44 मिनट यानी 2.4 फीसदी समय का ही उपयोग किया, जबकि बाकी का सारा समय 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले पर संयुक्त संसदीय समिति गठित करने की विपक्ष की मांग के हंगामे की भेंट चढ़ गया।
-इस पूरे साल संसद का अधिकांश कामकाजी समय हंगामे की भेंट चढ़ा तो वहीं सांसदों द्वारा खुद अपने वेतन भत्ते बढाने संबंधी विवादास्पद विधेयक को पारित किए जाने की भी मीडिया में काफी चर्चा रही।
- इस वर्ष राज्यसभा द्वारा महिला आरक्षण संबंधी विधेयक को पारित किया जाना एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। हालांकि लोकसभा में पारित नहीं हो सकने के कारण यह लागू नहीं हो सका।
-संसदीय कामकाज के लिहाज से वर्ष की शुरुआत ही काफी निराशाजनक रही। 22 फरवरी से शुरू होकर सात मई तक चले बजट सत्र में मात्र तीन मंत्रालयों की अनुदानों की अनुपूरक मांगों पर चर्चा की गई, जबकि बाकी सभी मंत्रालयों की अनुदान की अनुपूरक मांगों तथा अन्य विधायी कामकाज को गिलोटिन के जरिए निपटाया गया।
- संसद के दोनों सदनों में बजट सत्र में सरकार ने 27 विधेयकों को पारित कराने की योजना बनाई थी, लेकिन मात्र छह विधेयकों को ही पारित किया जा सका। बजट सत्र में लोकसभा में 12 विधेयक पारित किए गए। इसमें से पांच विधेयकोें पर 15 मिनट से भी कम समय की चर्चा कराई गई। इनके अलावा, 31 अगस्त को समाप्त हुए संसद के मानसून सत्र में सांसदों के वेतन वृद्धि आैर परमाणु दायित्व विधेयक पारित किए गए। दोनों ही विधेयक काफी चर्चित रहे।
- इस सत्र में सरकार ने दोनों ही सदनों में 35 विधेयक पेश करने की योजना बनाई थी लेकिन 23 विधेयक ही पेश किए जा सके। 33 विधेयकों को पारित कराने की योजना के स्थान पर केवल 21 विधेयकों को पारित किया गया। भारतीय संसद के इतिहास में यह अब तक का सबसे लंबा गतिरोध था।
- 1987 में बोफोर्स मामले में जेपीसी की मांग पर संसद में 45 दिन हंगामा हुआ था, लेकिन तब भी इस बार की तरह संसद का कामकाज पूरी तरह ठप नहीं हुआ था। संसद के इस सत्र के दौरान कायम रहे गतिरोध पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी गहरी चिंता जताते हुए कहा था कि उन्हें संसदीय प्रणाली के भविष्य को लेकर ही चिंता हो रही है।

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