सोमवार, फ़रवरी 28, 2011

आम बजट

कैसे तैयार होता है आम बजट


बजट के ज़रिए केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियां तय करने का काम सरकार का एक कोर ग्रुप करता है. इस कोर ग्रुप में प्रधानमंत्री के अलावा वित्त मंत्री और वित्त मंत्रालय के अधिकारी होते हैं. योजना आयोग के उपाध्यक्ष को भी इस ग्रुप में शामिल किया जाता है

वित्त मंत्रालय की ओर से प्रशासनिक स्तर पर जो अधिकारी होते हैं उसमें वित्त सचिव के अलावा राजस्व सचिव और व्यय सचिव शामिल होते हैं. यह कोर ग्रुप वित्त मंत्रालय के सलाहकारों के नियमित संपर्क में रहता है. वैसे इस कोर ग्रुप का ढाँचा सरकारों के साथ बदलता भी है.
बैठक दर बैठक
बजट पर वित्त मंत्रालय की नियमित बैठकों में वित्त सचिव, राजस्व सचिव, व्यय सचिव, बैंकिंग सचिव, संयुक्त सचिव (बजट) के अलावा केंद्रीय सीमा एवं उत्पाद शुल्क बोर्ड के अध्यक्ष हिस्सा लेते हैं.
वित्तमंत्री को बजट पर मिलने वाले योजनाओं और खर्चों के सुझाव वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग को भेज दिए जाते हैं जबकि टैक्स से जुड़े सारे सुझाव वित्त मंत्रालय की टैक्स रिसर्च यूनिट को भेजे जाते हैं.
इस यूनिट का प्रमुख एक संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी होता है. प्रस्तावों और सुझावों के अध्ययन के बाद ये यूनिट कोर ग्रुप को अपनी अनुशंसाएँ भेजती है.
पूरी बजट निर्माण प्रक्रिया के समन्वय का काम वित्त मंत्रालय का संयुक्त सचिव स्तर का एक अधिकारी करता है.
बजट के निर्माण से लेकर बैठकों के समय तय करने और बजट की छपाई तक सारे कार्य इसी अधिकारी के ज़रिए होते हैं

भारी गोपनीयता
बजट निर्माण की प्रक्रिया को इतना गोपनीय रखा जाता है कि संसद में पेश होने तक इसकी किसी को भनक भी न लगे.

इस गोपनीयता को सुनिश्चित करने के लिए वित्त मंत्रालय के नार्थ ब्लाक स्थित दफ्तर को बजट पेश होने के कुछ दिनों पहले से एक अघोषित 'क़ैदखाने' में तब्दील कर दिया जाता है.
बजट की छपाई से जुड़े कुछ कर्मचारियों को यहां पुलिस व सुरक्षा एजेंसियों के कड़े पहरे में दिन-रात रहना होता है.
बजट के दो दिन पहले तो नार्थ ब्लाक में वित्त मंत्रालय का हिस्सा तो पूरी तरह सील कर दिया जाता है.
यह सब वित्त मंत्री के बजट भाषण के पूरा होने और वित्त विधेयक के रखे जाने के बाद ही समाप्त होता है.



रविवार, फ़रवरी 20, 2011

21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस

भारत : खतरे में 196 भाषाएं
अंगेजी के वर्चस्व और संरक्षण ने सर्वाधिक नुकसान भारत में बोली जाने वाली भाषाओं का किया है। भारत में स्थिति सर्वाधिक चिंताजनक है। देश में 196 भाषाएं लुप्त होने को हैं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, दुनियाभर में ऐसी सैंकड़ों भाषाएं हैं जो विलुप्त होने के कगार पर हैं।
भारत के बाद दूसरे नंबर पर अमेरिका में स्थिति काफी चिंताजनक है, जहां ऐसी 192 भाषाएं दम तोड़ती नजर आ रही हैं। विश्व ईकाई द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, भाषाएं आधुनिकीकरण के दौर में प्रजातियों की तरह विलुप्त होती जा रही हैं। एक अनुमान के अनुसार, दुनियाभर में 6900 भाषाएं बोली जाती हैं लेकिन इनमें से 2500 भाषाओं को चिंताजनक स्थिति वाली भाषाओं की सूची में रखा गया है।
तो खत्म हो जाएंगी 2500 भाषाएं : रिपोर्ट कहती है कि ये 2500 भाषाएं ऐसी हैं जो पूरी तरह समाप्त हो जाएंगी। अगर संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2001 में किए गए अध्ययन से इसकी तुलना की जाए तो पिछले एक दशक में बदलाव काफी तेजी से हुआ है। उस समय विलुप्तप्राय: भाषाओं की संख्या मात्र नौ सौ थी लेकिन यह गंभीर चिंता का विषय है कि तमाम देशों में इस ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा रहा है। भारत, अमेरिका के बाद इस सूची में इंडोनेशिया का नाम आता है जहां 147 भाषाओं का आने वाले दिनों में कोई नाम लेवा नहीं रहेगा। संयुक्त राष्ट्र ने ये आंकड़े 21 फरवरी 2009 को अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस की पूर्व संध्या पर जारी किए थे। भाषाओं के कमजोर पड़कर दम तोड़ने की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनियाभर में 199 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें बोलने वालों की संख्या एक दर्जन लोगों से भी कम है। इनमें कैरेम भी एक ऐसी ही भाषा है जिसे उक्र ेन में मात्र छह लोग बोलते हैं। ओकलाहामा में विचिता भी एक ऐसी भाषा है जिसे देश में मात्र दस लोग ही बोलते हैं। इंडोनेशिया में इसी प्रकार लेंगिलू बोलने वाले केवल चार लोग बचे हैं। 178 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें बोलने वाले लेागों की संख्या 150 से कम है। दुनियाभर में भाषाओं की इसी स्थिति के कारण संयुक्त राष्ट्र ने 1990 के दशक में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी।
बांगलादेश ने दिखाई राह : बांग्लादेश में 1952 में भाषा को लेकर एक आंदोलन चला था। इसमें हजारों लोगों ने अपनी जान दी थी। इस आंदोलन के बारे में कहा जाता है कि इसी से बांग्लादेश की आजादी के आंदोलन की नींव पड़ी थी आैर भारत के सहयोग से नौ महीने तक चले मुक्ति संग्राम की परिणति पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बनने के रूप में हुई थी। इस आंदोलन की शुरूआत तत्कालीन पाकिस्तान सरकार द्वारा देश के पूर्वी हिस्से पर भी राष्ट्र भाषा के रूप में उर्दू को थोपे जाने के विरोध से हुई थी।

नेहरू की वसीयत

 नेहरू की वसीयत
बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी वसीयत भी लिखी थी जो कि आज तक खोली नहीं गई। यह एक बैंक में अब भी रखी हुई है। इसी बैंक में जलियांवाला कांड के समय पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर रहे जनरल माइकल डायर का भी खाता था। डायर के लंदन चले जाने के बाद तक यह खाता जारी रहा। जलियांवाला बाग में गोली चलाने का आदेश देने वाले ब्रिागेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर का खाता भी उसी बैंक में था।
 लखनऊ में तैनात इलाहाबाद बैंक के सहायक महाप्रबंधक हरिमोहन ने बताया कि दस्तावेजों की खोजबीन के दौरान हमारे हाथ लगी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की वसीयत जो एक बंद लिफाफे में अब भी बैंक की सेफ कस्टडी में रखी हुई है। उन्होंने बताया कि उपलब्ध लेजरों के अनुसार पंडित नेहरू ही नहीं बल्कि उनके पिता पंडित मोतीलाल नेहरू का भी इलाहाबाद बैंक में खाता था। उस समय बैंक में केवल अंग्रेजों और तब के राजा महाराजाओं और  नवाब - तालुकेदारों के ही खाते खोले जाते थे और डिप्टी कलक्टर से नीचे के किसी आम भारतीय का खाता खोला ही नहीं जाता था।
      हरिमोहन ने वर्ष 1892 का एक लेजर दिखाया जिसमें प्रदेश के कई राजाओं, महाराजाओं और तालुकेदारों के खातों में हजारों रुपए के लेन-देन के ब्यौरे हैं और सुल्तानपुर अंचल के तत्कालीन राजा पट्टी के खाते में तो तीन लाख से अधिक रुपए जमा थे। जलियांवाला नरसंहार के समय पंजाब के गवर्नर रहे जनरल डायर के नाम पर बैंक में 10 हजार रुपए जमा थे और बैंक में उस नरसंहार के खलनायक  बिग्रेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर का भी खाता था।     
      उन्होंने बताया कि हम शीघ ही बैंक के लखनऊ स्थित सौ साल पुराने भवन में एक संग्रहालय बनाने जा रहे हैं। इसमें बैंक की स्थापना से लेकर आज तक के अनेक दुर्लभ लेजर और दस्तावेज आम जनता के लिए रखे जाएंगे, जिनके पन्नों पर इतिहास की अनेक रोचक जानकारी अंकित हैं।

1865 में हुई बैंक की स्थापना
    वर्ष 1865 में पांच यूरोपीय नागरिकों द्वारा इलाहाबाद बैंक की शुरुआत हुई। बैंक की पहली शाखा इलाहाबाद में वर्ष 1865 में पांच यूरोपीय लोगों ने खोली और दूसरी शाखा कोलकाता में खोली गई। इलाहाबाद बैंक मूलत: अंग्रेजों का बैंक था। इसकी शुरुआती शाखाएं अंग्रेजी साम्राज्य के लिए रणनीतिक और सैनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहे कोलकाता, मेरठ, झांसी,  लखनऊ और कानपुर में खोली गई और  उन इलाकें में खोली गर्इं जहां अंग्रेज अधिकारियों के निवास थे और  जहां से उनका राजकाज चलता था।
     

बुधवार, फ़रवरी 16, 2011

सौ साल पुरानी हवाई डाक सेवा की कहानी दोहरायी गयी

 दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा भारत मे
करीब सौ साल पहले 18 फरवरी, 1911 को इलाहाबाद से नैनी (इलाहाबाद) तक 6500 पत्रों को लेकर जाने वाली प्रथम आधिकारिक हवाई डाक सेवा हुई की गई थी। इसे फ्रांस के पायलट हेनरी पीक्वेट ने उड़ाया था। यह विश्व की सर्वप्रथम हवाई डाक सेवा का शुभारंभ था।


18 फरवरी, 1911 को उस इतिहास रचा गया जब हेनरी पीक्वेट ने इलाहाबाद में यमुना के दाहिने किनारे से एक हेवर हवाई जहाज ने उड़ान भरी और  यमुना नदी पार कर 6500 पत्र और पोस्टकार्ड वाली डाक थेले को नैनी रेलवे स्टेशन पर ड्राप किया था। इससे भारत विश्व में हवाई डाक पहुंचाने वाला पहला देश बन गया था। हवाई डाक सेवा के सौ वर्ष पूरे होने की स्मृति में डाक विभाग द्वारा आयोजित समारोह में राज्यपाल जोशी ने बमरौली हवाई अड्डे से चेतक हेलीकाप्टर को झंडी दिखाकर रवाना किया। 500 पत्रों से भरे डाक थैले को ले जाने वाले इस चेतक के पायलट विंग कमांडर मुकेश कोठारी एवं स्क्वाड्रन लीडर अंशुल सक्सेना थे। उड़ान भरने के बाद हेलीकाप्टर पीएसी की ग्राउन्ड नैनी में पत्रों के थैले को डाक विभाग को सौंपा। डाक विभाग ने इस अवसर पर चार डाक टिकटों का एक सेट जारी किया। इसका विमोचन राज्यपाल ने किया।


हवाई डाक सेवा के 100 वर्ष पर चार डाक टिकटों के सेट प्रथम दिवस आवरण और मिनी शीट के माध्यम से डाक विभाग ने यमुना नदी के ऊपर से की गई प्रथम हवाई डाक उड़ान के इतिहास को उड़ान के पथ के साथ-साथ इस हवाई जहाज और पायलट को अंकित किया है। पृष्ठभूमि में इलाहाबाद का किला है। प्रथम दिवस आवरण पर विगत वर्षों में जारी किये गए डाक टिकटों के कोलाज को दर्शाया गया है।

मंगलवार, फ़रवरी 15, 2011

राह दिखाते शास्त्री जी.....

देश के दूसरे प्रधानमंत्री की जीवन शैली आज के दौर में दूसरे राजनेताओं के लिए एक नेक राह दिखाने का काम कर सकती है। उनके बेटे सुनील शास्त्री द्वार लिखी गई पुस्तक 'लाल बहादुर शास्त्री पास्ट फारवर्ड" के कुछ अंश...


'स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जब बाबूजी फैज़ाबाद जेल में बंद थे आैर मां उनके लिए दो आम छिपा कर ले गई थी, तब वह काफी नाराज हुए थे। वह इसलिए नाराज हुए थे, क्योंकि कैदियों को बाहर से भोजन उपलब्ध कराना अवैध है। लालबहादु ने रेल मंत्री के रूप में ट्रेनों में एक सामान्य नागरिक की तरह यात्रा की। पुस्तक में बचपन की कई घटनाओं का जिक्र किया है। इसी संदर्भ में एक घटना का जिक्र करते हुए सुनिल ने लिखा, 'मैं बचपन में बड़ी गाड़ी में सफर करने का सपना देखा करता था जो मेरे पिता के दर्जे के अनुरूप हो। बाबूजी को उपयोग के लिए सेवरले अंपाला कार मिली थी।"

'एक दिन मैंने बाबूजी के निजी सचिव से सेवरले अंपाला गाड़ी को घर लाने का आग्रह किया। हमने कार चालक से चाबी मांगी और  उसे चला कर ले गए।" बाबूजी ने कार के चालक से नाराजगी भरे अंदाज में पूछा, 'क्या आप अपने साथ लॉग बुक रखते हैं।" जब चालक ने नकारात्मक जबाव दिया तब उन्होंने पिछले दिन कार द्वारा तय की गई दूरी की जानकारी मांगी। चालक ने जब दूरी 14 किलोमीटर बताई जब उन्होंने मां से निजी सचिव को इसका भुगतान करने को कहा जो राशि सरकारी खाते में गई।

पुस्तक में एक घटना का जिक्र है कि लालबहादुर शास्त्री शायद जीवन में उस दिन पहली बार रोए थे। शास्त्री भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में हुए युद्ध के दौरान घायल सैनिकों को देखने अस्पताल गए थे। अस्पताल में एक घायल सैनिक ने कहा कि वह आज उठने की स्थिति में भी नहीं है, ताकि वह अपने प्रिय प्रधानमंत्री को 'सलाम" कर सके। इतना सुनते ही वह फूट फूट कर रोने लगे थे।

रविवार, फ़रवरी 13, 2011

फूल के रंगों में छिपे प्रेम के रंग
वेलेंटाइन डे पर लोग कुछ न कुछ खास तोहफा देना चाहते हैं। आप भी देना चाहते होंगे। बहुत अच्छी बात है, मगर इन तोहफों की भीड़ में उनके लिए फूल ले जाना मत भूलिएगा। क्योंकि फूल ही हैं जो आपके दिल की बात उन तक पहुंचाते हैं। फूल बगैर एक शब्द बोले, आसानी से आपके मन का हर राज खोल देते हैं।



वेलेंटाइन डे पर अगर आप यह सोच कर परेशान हैं कि लाल गुलाब के अलावा अगर अपने प्रेमी को कुछ नया देना चाहते हैं तो क्या दें ? आपकी यह परेशानी भी दूर हो सकती है। सफेद गुलाब बढि़या विकल्प है। वैसे सफेद गुलाब शांति के लिए माना जाता है। लेकिन अगर आप किसी को खूबसूरत कहना चाहते हैं तो सफेद गुलाब दें। अगर आप यह कहना चाहते हैं कि आपसे बेहतर कोई नहीं। वह आपके लिए सबसे खास हैं। आपके जीवन में उनके बगैर एक खालीपन सा है तो नारंगी रंग का गुलाब दें। अगर शादी के लिए प्रोपोज करना चाहते हैं तो 'गाढ़े लाल रंग" के गुलाब के साथ अंगूठी दें। फिर आप सोच क्या रहे हैं ? बस उठिए आैर प्यार का इजहार कर दीजिए।

शुक्रवार, फ़रवरी 11, 2011

गर्भनिरोधक के इस्तेमाल के बाद गर्भपात पर दिया फतवा

 भ्रूण का गर्भपात कराना भी हराम : देवबंद



दारुल उलूम देवबंद ने अपने नए फतवे में गर्भ में पल रहे तीन महीने से ज्यादा के भ्रूण का गर्भपात कराने को भी हराम बताया है।


गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल के पहले हकीम से पूछने का फतवा देने के बाद देवबंद ने कहा है कि यदि गर्भ में पल रहे भ्रूण की उम्र तीम माह से कम है तो गर्भपात कराने के पहले भी हकीम या किसी 'पवित्र मुस्लिम चिकित्सक" से सलाह लें। लेकिन तीन महीने से ज्यादा के भ्रूण का गर्भपात कराने को हराम बताया है। देवबंद ने हलाल आैर हराम संबंधी फतवों की श्रेणी में पूछे गए एक सवाल के जवाब में यह फतवा दिया है।


मुस्लिम संस्थान से पूछा गया है, 'हमारे दो बच्चे हैं। हमारा छोटा बच्चा लगभग 11 महीने का है। मेरी पत्नी एक बार फिर से गर्भवती है। चिकित्सक ने उसकी शारीरिक स्थिति को देखते हुए उसे अगले बच्चे के लिए लगभग 30 महीने का इंतजार करने को कहा है, इसलिए वह गर्भपात कराना चाहती है। क्या गर्भपात की इजाजत है ?" इसके जवाब में फतवा दिया गया है, 'अगर कोई पवित्र मुस्लिम चिकित्सक यह कहे कि महिला गर्भावस्था आैर प्रसव का दर्द सहन करने में सक्षम नहीं है, तो तीन महीने से कम के भूण का गर्भपात कराया जा सकता है, लेकिन अगर भूण तीन महीने से ज्यादा का हो, तो गर्भपात कराना पूरी तरह हराम है।"


हालांकि चिकित्सकों की दृष्टि में देवबंद का यह फतवा भी अनुचित है। चिकित्सकों का मानना है कि अगर कोई प्रशिक्षित चिकित्सक गर्भपात की सलाह देता है तो वह महिला की हालत देख कर ही इसके बारे में कहता है, जबकि 'नीम-हकीम" किसी महिला की हालत का बेहतर तरीके से अंदाज नहीं लगा सकते। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. फौजिया खानम कहती हैं, 'यह बात सही है कि तीन महीने से ज्यादा का भूण होने पर गर्भपात महिला के लिए खतरनाक साबित हो सकता है, लेकिन यह बात किसी तरह से गले नहीं उतरती कि तीन महीने से कम का भ्रूण होने पर भी हकीम की सलाह पर ही गर्भपात कराएं।"


डॉ. फौजिया परामर्श देती हैं कि अगर कोई अपने परिवार की महिला की जान को जोखिम में नहीं डालना चाहता, तो उसे महिला को किसी प्रशिक्षित चिकित्सक के पास ही ले जाना चाहिए। देवबंद ने इसके पहले अपने एक फतवे में कहा था कि गर्भधारण रोकने के लिए गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल भी हकीम से पूछ कर ही करना चाहिए। अगर हकीम इसकी इजाजत देता है, तो गर्भनिरोधक का इस्तेमाल हराम नहीं है ।


आज समाज न्यूज़ पेपर में ‘media-Input’

आज समाज न्यूज़ पेपर  में ‘media-Input’

शनिवार, फ़रवरी 05, 2011

थैंक ए मेल पर्सन डे पर खास

.... अब डाकिया नहीं लाते पैगाम



एक जमाना था जब किसी अपने का संदेश पाने को बेकरार निगाहें देहरी तक आने वाले रास्ते पर दूर तक टिकी रहती थीं। साइकिल की घंटी की आवाज कानों में पड़ते ही पैर रोके नहीं रुकते थे। खाकी वर्दी वाले डाकिए से अपनों का पैगाम पाकर मन मयूर नाच उठता था और  डाकिए को गुड़ के साथ ठंडा पानी या चाय के साथ मठरी खिलाकर उसका आभार प्रकट किया जाता था।

अब दौर बदल गया है। आज फेसबुक और  ई-मेल के जमाने में चिट्ठियों का चलन नहीं के बराबर रह गया है, लेकिन दूरदराज के गांव देहात में आज भी चिट्ठी लाने का काम डाकिया ही करता है। चिट्ठी से भी ज्यादा परदेस में नौकरी करने वाले बेटे का मनीआर्डर आए तो मां-बाप के चेहरे खिल जाते हैं। घूंघट की ओट से झांकती बहुरिया की आंखों में भी डाकिए के लिए आभार नजर आता है।

सर्दी, गर्मी, बरसात में हर तरह की दुष्वारियों के बीच साइकिल पर झोला टांगे हर रोज आने वाला डाकिया सिर्फ संदेशवाहक ही नहीं बल्कि सुख-दुख का साथी भी होता है और  शुक्रवार को डाकिए को धन्यवाद देने का दिन है।

गुरुवार, फ़रवरी 03, 2011

पर्यावरण को बचाने के प्रयास


आद्र्र भूमि में छिपे जीवन के राज
 
 दुनियाभर में पर्यावरण को बचाने के प्रयासों के तहत आद्र्र भूमि (वेटलैंड) संरक्षण सबसे अहम पहलू है। पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि जैवविविधता और भोजन श्रृंखला को सुचारू तौर पर चलाने का लक्ष्य वेटलैंड संरक्षण के बिना नहीं पाया जा सकता। हमारे देश में दलदल और मैंग्रोव के तौर पर आद्र्र भूमि मौजूद है, जिन्हें बचाने के लिए पर्यावरण कार्यकर्ता लगातार प्रयासरत हैं।

वेटलैंड किसी जलक्षेत्र के आसपास की आद्र्र भूमि को कहा जाता है। ऐसी भूमि सूखे की स्थिति में पानी को बचाने में मदद करते हैं। इतना ही नहीं बाढ़ के हालात में यह पानी का स्तर कम करने और  सूखी मिट्टी को बांध कर रखने में मददगार होते हैं। मुंबई और  दिल्ली जैसे महानगरों में ऐसी भूमि को सबसे तेजी से नुकसान पहुंच रहा है। जलस्रोत  के बहुत नजदीक तक निर्माण कार्य होने से आद्र्र भूमि के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।

नियमानुसार किसी भी जलीय क्षेत्र के आसपास निर्धारित दूरी तक निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए, लेकिन शहरों में तो जल के स्रोत  की छाती चीर कर भी इमारतें बनाई जा रही हैं। अगर अब भी हम नहीं चेते तो न तो हम सूखे से बच पाएंगे और न ही बाढ़ से। आद्र्र भूमि न केवल मनुष्य को प्राकृतिक आपदा के कहर से बचाता है, बल्कि वन्यजीवों के जीवन में भी इनका अहम स्थान है।

आद्र्र भूमि वन्य प्राणियों के लिए अहम 'फीडिंग, ब्रीडिंग  और ड्रिंकिंग " क्षेत्र हैं। ऐसी भूमि के नमूनों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि यह जैवविविधता और भोजन श्रृंखला का सबसे नायाब उदाहरण होता है। भारत के उड़ीसा महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे कई प्रदेशों में आद्र्र भूमि संरक्षण के लिए विभिन्न परियोजनाएं चल रहीं हैं, लेकिन इनका हश्र भी दूसरी सरकारी योजनाओं की तरह ही हो रहा है। अगर यही स्थिति रही तो हमारे पास जैवविविधता को दिखाने के लिए कोई साधन नहीं बचेगा।
विश्व वेटलैंड दिवस : हर साल दो फरवरी को मनाया जाता है। इसी दिन 1871 में ईरान के रामसर शहर में आद्र्र भूमि पर एक समझौते (कंवेंशन ऑन वेटलैंड) पर हस्ताक्षर हुए थे। इसके तहत दुनियाभर में जैवविविधता संरक्षण के लिए आद्र्र भूमि को बचाने के विभिन्न उपायों पर विचार-विमर्श हुआ। रामसर सम्मेलन में वेटलैंड को ऐसी दलदली भूमि के तौर पर परिभाषित किया गया था, जहां जलीय स्रोत का पानी स्थाई तौर पर संरक्षित रहता है। इस तरह नदियों तालाबों से लेकर समुद्रों तक के आसपास की भूमि वेटलैंड के दायरे में आती है।

बुधवार, फ़रवरी 02, 2011

आज समाज में ‘Input’

देश में हर चार मिनट में एक सुसाइड.....

देश में हर चार मिनट में कोई एक अपनी जान दे देता है। ऐसा करने वाले तीन लोगों में से एक युवा होता है। यानि देश में हर 12 मिनट में 30 वर्ष से कम आयु का एक युवा अपनी जान ले लेता है। ऐसा कहना है राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो का।